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________________ दशवैकालिक का महत्त्व ___ दशवैकालिक सूत्र की रचना से पूर्व आगम पढ़ने के क्रम में पहले आचारांग सूत्र और फिर उत्तराध्ययन सूत्र पढ़ने का विधान था। इसकी रचना होने पर आचारांग का स्थान दशवैकालिक को प्राप्त हो गया। दीक्षा लेते ही श्रमण को सबसे पहले दशवैकालिक और फिर उत्तराध्ययन पढ़ाया जाने लगा। यह परिवर्तन भी दशवैकालिक की महत्ता स्थापित करता है। इस आगम को आचार-बोध का एक अत्यन्त सरल और सारपूर्ण स्थान प्राप्त हो गया। प्राचीन समय में आचारांग सूत्र का 'शस्त्र परिज्ञा' अध्ययन पढ़े, समझे बिना महाव्रतों की उपस्थापना नहीं की जाती थी। इसी प्रकार आचारांग का पिण्डैषणा अध्ययन पढ़े बिना भिक्षा के लिए जाने की अनुमति नहीं थी, किन्तु अब उनकी पूर्ति केवल दशवैकालिक सूत्र के षड्जीवनिका 'चतुर्थ' अध्ययन तथा पंचम पिण्डैषणा अध्ययन पढ़ने से ही हो जाती है-इससे भी दशवैकालिक की महिमा व उपयोगिता प्रगट होती है। मेरी दृष्टि में दशवकालिक सूत्र पूज्य गुरुदेव की कृपा से मुझे प्रारम्भ से ही आगम स्वाध्याय की प्रेरणा मिलती रही है। आगम स्वाध्याय व शास्त्र परिशीलन करता रहता हूँ। आगमों के प्रति मेरे हृदय में अटल श्रद्धा तो है ही साथ ही आगम स्वाध्याय से चित्त की एकाग्रता, निर्मलता और संयम की परिशुद्धि होती है यह भी मेरा अनुभव है। आगमों में दशवैकालिक और उत्तराध्ययन सूत्र मेरे स्वाध्याय के प्रिय आगम रहे हैं। किन्तु उत्तराध्ययन से भी अधिक रुचिकर और प्रेरणाप्रद मुझे दशवैकालिक लगता है। ___कभी-कभी मैं सोचता हूँ कुछ आगमों की अपनी-अपनी एक विशेषता होती है-जैसे आचारांग सूत्र की आर्ष शैली ! अत्यन्त भाव-भरी, छोटे-छोटे सूत्र वचनों में गम्भीर अर्थ की अभिव्यंजनाउसकी अलग ही एक शैली है। सूत्रकृतांग की दार्शनिक दृष्टि और विभिन्न दर्शनों के बीच अनेकान्त दर्शन की प्रस्तुति की शैली अनूठी है। ___ स्थानांग की चौभंगिया, विविध व्यावहारिक उपमा, उदाहरणों द्वारा विषय को विस्तृत तथा रुचिकर एवं ज्ञानवर्द्धक बनाने की उसकी प्रतिपादन शैली भी विलक्षण है। भगवती सूत्र जहाँ ज्ञान-विज्ञान का महासागर है वहीं उसमें आये भिन्न-भिन्न विषयों के प्रश्न और उत्तर इतनी रोचकता लिए हैं कि ज्ञान भी मिलता है और मनोरंजन भी। ज्ञातासूत्र के रूपक और उदाहरण, दृष्टान्त और दार्टान्त अपनी अनोखी शैली रखते हैं। इसके साथ ही भाषा में साहित्य-सी अलंकारिता व लालित्य देखते ही बनता है। उपासकदशा का व्रत-विवेचन और उपसर्गों का लोमहर्षक वर्णन पढ़ते-पढ़ते ही मन अभिभूत हो उठता है। SSSSE 乐圖 A4 PM 發 (१४) SYMAAY (AMUml स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007649
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages498
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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