SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Suwal वनस्पतिकाय समारंभ-विरमण ___ २२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मे दिआ वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा–से बीएसु वा बीयपइडेसु वा रूढेसु वा रूढपढेएसु वा जाएसु वा जायपइट्टेसु वा हरिएसु वा हरियपइडेसु वा छिन्नेसु वा छिन्नपइडेसु वा सच्चित्तकोलपडिनिस्सिएसु वा, न गच्छेज्जा न चिद्वेज्जा न निसीइज्जा न तुअहिज्जा अन्नं न गच्छाविज्जा न चिट्ठाविज्जा न निसियाविज्जा न तुयट्टाविज्जा अन्नं गच्छंतं वा चिटुंतं वा निसीयंतं वा तुअटुंतं वा न समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। ऐसे संयत, विरत, पापकर्म-प्रतिहत तथा पापकर्म-प्रत्याख्यात भिक्षु अथवा भिक्षुणी दिन में या रात में, एकान्त या परिषद में, सोते हुए या जागते हुए, बीजों पर, बीजों पर रखे अन्य पदार्थों पर, अंकुरित बीजों पर, अंकुरित बीजों पर रखी वस्तुओं पर, पल्लवित वनस्पति पर, पल्लवित वनस्पति पर रखी | वस्तुओं पर, हरित वनस्पति पर, हरित वनस्पति पर रखी वस्तुओं पर, छिन्न हुई वनस्पति पर, छिन्न हुई वनस्पति पर रखी वस्तुओं पर, सचित्त अथवा कीड़े लगे काठ पर न चले, न खड़ा रहे, न बैठे और न सोये; अन्य को न चलावे, न खड़ा करे, न बैठावे, न सुलावे; अन्य द्वारा चलने का, खड़ा होने का, बैठने का, सोने का अनुमोदन नहीं करे। मैं समस्त जीवन पर्यन्त तीन करण और तीन योग से इसका पालन करूँगा। अर्थात् मैं जीवन पर्यन्त यह सब मन, वचन, काया से न ISS करूँगा, न कराऊँगा, न करने वाले का अनुमोदन करूँगा। __ भन्ते ! मैं अतीत में किये ऐसे वनस्पति-समारम्भ का प्रतिक्रमण करता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, उसकी गर्दा करता हूँ और आत्मा द्वारा वैसी प्रवृत्ति का त्याग करता हूँ॥२२॥ चतुर्थ अध्ययन : षड्जीवनिका Fourth Chapter : Shadjeevanika ७३ Catuwal Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007649
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1997
Total Pages498
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy