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________________ रहने दिये। हाथों में हथकड़ी और पाँवों में बेड़ी डालकर तहखाने (भौंयरे) में बन्द किया और घर को ताला लगाकर तथा चाबी अपने साथ लेकर पीहर चली गई। तीसरे दिन धनावा वापस आया तो घर का ताला लगा देखकर चकित हुआ। किसी तरह मूला से चाबियाँ मँगवाईं। लेकिन वसुमती (चन्दना) उसे कहीं दिखाई न दी। उच्च स्वर से पुकारने पर तलघर से चन्दना का क्षीण स्वर सुनाई पड़ा। धनावा ने उसे निकाला तो उसकी दुर्दशा देखकर रो पड़ा। तीन दिन भूखी चन्दना को एक सूप के कौने में रखकर उड़द के वाकुले खाने को दिये और हथकड़ी-बेड़ी काटने के लिए किसी लुहार को बुलाने चला गया। तीन दिन भूखी-प्यासी कमजोर चन्दना उस सूप को लेकर वहीं देहली पर बैठ गई और मन में विचार करने लगी-'यदि कोई त्यागी-तपस्वी श्रमण-सन्त आ जायें तो उन्हें यह बाकुले देकर अपना जीवन धन्य बनाऊँ।' इधर भगवान महावीर ने १३ बोलों का एक कठिन अभिग्रह ले लिया था (१) राजकन्या हो, (२) वेची गई हो, (३) मुण्डित केश हो, (४) हाथों में हथकड़ी, (५) पैरों में वेड़ी, (६) तीन दिन की भूखी, (७) सिर में घाव, (८) आँखों में आँसू, (९) दिन के दो पहर बीत चुके हों, (१०-११) एक पैर देहली के अन्दर और एक पैर बाहर हो, (१२) छाज (सूप) में , (१३) वासी उड़द के बाकुले लिए खड़ी हो तो उससे भिक्षा ग्रहण करना अन्यथा छह महीने तक उपवास (अनशन) करना। भगवान कौशाम्बी में प्रतिदिन आहार के लिए भ्रमण करते; किन्तु उनका यह १३ बोलों का अभिग्रह पूरा न होता तो वापस लौट जाते। इस तरह ५ माह २५ दिन व्यतीत हो गये। आखिर उनका अभिग्रह चन्दनबाला के हाथों पूर्ण हुआ। भगवान ने भिक्षा ग्रहण की। तत्काल 'अहोदानं अहोदानं' की देव-ध्वनि गूंज उठी। देवताओं ने पाँच दिव्यों की वृष्टि की। साढ़े बारह करोड़ सोनैया की वर्षा हुई। धनावा सेठ का घर-आँगन सोनैया से भर गया। चन्दनबाला की हथकड़ियाँ-बेड़ियाँ टूट गईं। उसके केश पुनः उग आये। पहले से भी कई गुना रूप निखर उठा। इस चमत्कार को देखकर धनावा के हर्ष का ठिकाना न रहा और मूला हतप्रभ रह गई। नगर-निवासी खुशी से झूम उठे। भगवान के पारणे की बात जानकर सभी ने चन्दना की प्रशंसा की। राजा शतानीक को जब चन्दनबाला का वास्तविक परिचय ज्ञात हुआ तो उन्हें अपनी राज्य-लिप्सा पर बहुत पश्चात्ताप हुआ। भविष्य में व्यर्थ ही किसी देश पर आक्रमण न करने का निर्णय कर लिया। चन्दनबाला विरक्त-सी रहने लगी। कुछ समय बाद जब उसे ज्ञात हुआ कि भगवान महावीर को कैवल्य प्राप्त हो चुका है और वे धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले हैं, तो वह उनके समवसरण में पहुँची और दीक्षा अंगीकार कर ली। चन्दनबाला भगवान महावीर की प्रथम शिष्या साध्वी और ३६,000 साध्वी-संध की प्रमुखा थी। केवलज्ञान प्राप्त कर वह मुक्त हो गई। . ४४८ . अन्तकृद्दशा महिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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