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________________ अध्याय ९ 4车车与车与车与纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷6555555555555555555纷纷纷纷纷纷纷纷6 अन्तकृद्दशासूत्र में संकेतित / सन्दर्भित प्रसिद्ध व्यक्तित्व अन्तकृद्दशासूत्र में अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों का उल्लेख हुआ है। जो साधक भगवान अरिष्टनेमि और भगवान महावीर के युग में अन्तकृत् हुए, जिन्होंने उत्कृष्ट साधना द्वारा उसी भव में भवान्त करके जन्म-मरणरूपी संसार का अन्त करके सिद्धि प्राप्त की, उनका तो लगभग पूर्ण वर्णन किया गया है लेकिन कुछ प्रसिद्ध व्यक्तियों के विषय में सिर्फ संकेत ही किया गया है। यथा - जहा दढपइन्ने दृढ़ प्रतिज्ञ के समान, जहा मेहे - मेघकुमार के समान | 555555+ इनके अतिरिक्त सुधर्मा स्वामी, जंबू स्वामी का उल्लेख अनेक स्थलों पर है, गणधर गौतम का भी नाम आया है, श्रेणिक और कोणिक आदि का नाम भी। लेकिन सिर्फ नामोल्लेख ही है, उनका परिचय ( जीवन परिचय) नहीं दिया गया है। इस अध्याय में हम अन्तकृद्दशासूत्र में संदर्भित / संकेतित कुछ विशिष्ट महत्त्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध व्यक्तियों का संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास कर रहे हैं। १. गौतम गणधर ( इन्द्रभूति ) इन्द्रभूति गौतम, भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य और प्रथम गणधर थे। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है मगध की राजधानी राजगृह के समीप ही गोबर नाम का एक ग्राम था। वहाँ गौतमगोत्रीय ब्राह्मण वसुभूति निवास करता था । उसकी पत्नी का नाम पृथ्वी था । वसुभूति के तीन पुत्र थे - ( 9 ) इन्द्रभूति, (२) अग्निभूति, और (३) वायुभूति । ये तीनों ही चारों वेद-वेदांगों, चौदह विद्याओं में निष्णात और प्रसिद्ध याज्ञिक थे। इन तीनों भाइयों में इन्द्रभूति ज्येष्ठ (सबसे बड़े भाई ) थे। ये अनेक विषय के धुरन्धर ज्ञाता और यज्ञ कराने में अत्यधिक निपुण थे । इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी । ख्याति के कारण इन्हें अपने ऊपर कुछ अभिमान भी था । कर्मकांडी ब्राह्मण के रूप में ये विख्यात थे। साथ ही अपने समाज में सम्पन्न और अग्रगण्य थे। अपापा नगरी के सम्पन्न सोमिल ब्राह्मण ने यज्ञ करने का विचार किया। उसने अनेक विद्वान् ब्राह्मण बुलवाये तथा इन्द्रभूति गौतम को भी बुलवाया तथा यज्ञाचार्य के पद पर इन्हें अधिष्ठित किया। यज्ञ प्रारम्भ हो गया। ४२८ • Jain Education International For Private Personal Use Only अन्तकृद्दशा महिमा www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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