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________________ विवेचन जैसा कि पहले बता चुके हैं प्रारंभ के पाँच वर्गों के ५१ अध्ययनों में जिन साधक आत्माओं का वर्णन है उनका सम्बन्ध द्वारका नगरी एवं वासुदेव श्रीकृष्ण के राज परिवार के साथ रहा है । इसलिए सर्वप्रथम द्वारका नगरी आदि का वर्णन किया गया है । द्वारका-भारतीय साहित्य और इतिहास में अत्यन्त प्रसिद्ध यह नगरी भारत की अतीव समृद्धिशाली और सुन्दरतम नगरियों में थी । इसके निर्माण के विषय में यह घटना प्रसिद्ध है मथुरा के अत्याचारी शासक कंस का श्रीकृष्ण के हाथों अन्त हो जाने पर उसकी पत्नी जीवयशा रोती बिलखती अपने पिता प्रतिवासुदेव जरासंध के पास गई । उसका हृदय विदारक विलाप और उत्तेजक वचन सुनकर जरासंध क्रोध में आग बबूला हो उठा । उसने शौरीपुर के राजा समुद्रविजय जी के पास दूत भेजा कि यदि अपना भला चाहते हो तो तुरंत कृष्ण-बलराम को मेरे पास भेज दो, अन्यथा मैं शौरीपुर का सर्वनाश कर डालूँगा। समुद्रविजय जी ने अपने मंत्रियों एवं निमित्तज्ञों से पूछा-हमें क्या करना चाहिए ? प्रधान निमित्तज्ञ ने बताया-यद्यपि आपके वंश में तीन-तीन महापुरुष पैदा हुए हैं । भावी तीर्थंकर कुमार अरिष्टनेमि, वासुदेव श्रीकृष्ण एवं वलदेव वलभद्र । इनके रहते कोई आपका वाल वांका नहीं कर सकता, परन्तु यह भूमि यादवों के लिए अनुकूल नहीं है । आये दिन के संघर्ष एवं अशान्ति से बचने के लिए आप सपरिवार दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्रस्थान कर दीजिए । जाते-जाते जहाँ पर सत्यभामा पुत्र रत्न को जन्म दे, वहीं पर अपना झण्डा गाड़ दें । उसी भूमि पर यादव वंश का अभ्युदय होगा । समुद्रविजय जी, वसुदेव, श्रीकृष्ण, वलभद्र आदि पूरा यादव कुल चलता-चलता दक्षिण-पश्चिमी समुद्रतट पर पहुँच गया । वहाँ रैवतक गिरि की वायव्य दिशा में छावनी डाली । वहीं पर सत्यभामा ने भानु और भ्रमर-दो पुत्रों को जन्म दिया । निमित्तज्ञ के कहे अनुसार वहीं पर यादवों ने अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया । वासुदेव श्रीकृष्ण ने अष्टम भक्त तप करके देवता का स्मरण किया । सुस्थित नामक देव उपस्थित हुआ । वासुदेव ने कहा-मेरे लिए एक नई नगरी का निर्माण करो । देवता ने इन्द्र महाराज को श्रीकृष्ण वासुदेव की भावना बताई । इन्द्र महाराज ने वैश्रमण कुबेर को आदेश दिया कि वासुदेव श्रीकृष्ण के लिए एक अतीव रमणीय विशाल नगरी का निर्माण करो । कुबेर ने १२ योजन लम्बी और ९ योजन चौड़ी एक भव्य विशाल नगरी का निर्माण किया । इस नगरी में अनेक द्वार-उपद्वार होने से इसका नाम (द्वारवती) द्वारका रखा गया । आचार्य हेमचन्द्र के वर्णन के अनुसार-यहीं पर पहले वासुदेव की द्वारका नामक नगरी थी जो बाद में समुद्र में डूब गई । कुबेर ने उसी स्थान पर वैसी ही नगरी का निर्माण किया इसलिए उसका भी नाम द्वारका रखा । -(त्रिषष्टि शलाका ८,१५१) . १८. अन्तकृद्दशा सूत्र : प्रथम वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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