SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( प्रथम अध्ययन द्वारका वर्णन सूत्र ४ : जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता । तं जहा-गोयम जाव विण्हु । पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई णाम णयरी होत्था । दुवालस जोयणायामा णव-जोयण वित्थिण्णा धण-वइ-मइ-णिम्मिया चामीगर-पागारा नाणामणि-पंचवण्ण कविसीसग-परिमण्डिया सुरम्मा ! अलकापुरी संकासा पमुइय-पक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया पासाइया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा । सूत्र ४ : आर्य जम्बू-हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा सूत्र के प्रथम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं, जैसे गौतम आदि, तो हे भगवन् ! भगवान महावीर स्वामी ने प्रथम अध्ययन में क्या भाव कहा है ? किस प्रकार का वर्णन किया है ? आर्य सुधर्मा-हे जम्बू ! वह इस प्रकार है । उस काल उस समय में द्वारका नाम की एक नगरी थी । वह नगरी बारह योजन लम्बी, नौ योजन चौड़ी थी । धनपति-कुबेर ने अपनी बुद्धि कल्पना से उसका निर्माण किया था । वह सोने के कोट से युक्त, पांच प्रकार की (इन्द्र, नील, वैडूर्य, पद्म एवं राग आदि) मणियों से जटित कंगूरों से सुशोभित थी । कुबेर की नगरी अलकापुरी के समान बड़ी सुरम्य लगती अन्तकृद्दशा सूत्र : प्रथम वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy