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________________ परिसा णिग्गया...जाव परिसा पडिगया । तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्ज सुहम्मस्स अंतेवासी अज्ज जंबू जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासीजइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं जाव संपत्तेण सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अयमढे पण्णत्ते । अट्ठमस्स णं भंते ! अंगस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? सूत्र २ उस काल और उस समय में , स्थविर आर्य सुधर्मा स्वामी पाँच सौ अणगार शिष्यों के परिवार सहित श्रमण नियमों के अनुसार विचरते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम सुखपूर्वक विहार करते हुए चम्पानगरी के पूर्णभद्र उद्यान में पधारे । गणधर सुधर्मा स्वामी का आगमन सुनकर श्रद्धालु नागरिक दर्शन और प्रवचन सुनने के लिए आये । गणधर सुधर्मा ने उपस्थित परिषद्-जनता को धर्म का उपदेश दिया । धर्मोपदेश सुनकर अनेक लोगों ने त्याग-प्रत्याख्यान, नियम आदि ग्रहण किये और वापस अपने स्थान को लौट गये । उस काल उस समय में, आर्य सुधर्मा स्वामी के अन्तेवासी आर्य जम्बू ने (परिषदा जाने के पश्चात्) विनयपूर्वक वन्दन-नमन करके उनकी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछा-हे भगवन् (भन्ते) ! (यदि) धर्म की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने सातवें अंग शास्त्र उपासकदशा का यह अर्थ फरमाया है तो, हे भगवन् ! अष्टम अंग अन्तकृद्दशा सूत्र में किस विषय का (भाव या वर्णन) प्रतिपादन किया है ? Sudharmā Swāmīin Campā City : Maxim 2: . At that time and at that period, elder sage (sthavira) Arya Sudharmă Swami with his five hundred mendicant - .१०. अन्तकृद्दशा सूत्र : प्रथम वर्ग - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
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