SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ After hearing the sermon of Bhagawāna, Srikrsna returned back. २५: तए णं से गयसुकुमाले कुमारे अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतियं धम्म सोच्चा जं णवरं अम्मापियरं आपुच्छामि । जहा मेहो जं णवरं (महिलियावज्जं जाव वढियकुले) । तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धढे समाणे जेणेव गयसुकुमाले कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गयसुकुमालं कुमारं आलिंगइ, आलिंगित्ता उच्छंगे निवेसेई निवेसित्ता एवं वयासीतुमं ममं सहोदरे कणीयसे भाया, तं मा णं देवाणुप्पिया ! इयाणिं अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए मुण्डे जाव पव्ययाहि। अहं णं बारवईए णयरीए महया रायाभिसेएणं अभिसिंचिस्सामि । तए णं से गयसुकुमाले कुमारे कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। सूत्र २५ : उस समय प्रभु का धर्मोपदेश सुनकर गजसुकुमाल कुमार संसार से विरक्त हो गया । वैराग्य जागृत होने पर प्रभु अरिष्टनेमि को वन्दना करके इस प्रकार बोले-हे भगवन् ! मुझे यह धर्म रुचिकर लगा है और मुझे इस पर प्रीति उत्पन्न हुई है । अतः मैं इसे स्वीकार करना चाहता हूँ और माता-पिता की आज्ञा लेकर मैं आपके पास श्रमण-धर्म ग्रहण करूँगा । इस प्रकार मेघकुमार के समान भगवान् को निवेदन करके गजसुकुमाल अपने घर आये और माता-पिता के सामने अपने विचार प्रकट किये । दीक्षा की बात सुनकर देवकी बहुत दुखी हुई । एक बार मूर्छित होकर गिर पड़ी । फिर आँसू बहाते हुए उसने कहा-हे पुत्र ! तुम हमें बहुत प्रिय हो। हम तुम्हारा वियोग सहन नहीं कर सकेंगे । अभी तुम्हारा विवाह भी अष्टम अध्ययन • ९१ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007648
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages587
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_antkrutdasha
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy