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________________ २८. कप्पइ णे, कप्पइ णे पाउं, अदुवा विभूसाए। पुढो सत्थेहिं विउद्देति। २९. एत्थ वि तेसिं णो णिकरणाए। ३०. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिणाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। ३१. तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं उदयसत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं उदयसत्थं समारंभावेज्जा, उदयसत्थं समारंभंते वि अण्णे ण समणुजाणेज्जा। ३२. जस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णातकम्मे। त्ति बेमि। ॥ तइओ उद्देसओ सम्मत्तो ॥ २८. (कुछ कहते हैं) "हमें पीने के लिए सचित्त जल का उपयोग करना कल्पता है।" (यह आजीवकों एवं शैवों का कथन है)। (कुछ कहते हैं) "हम पीने तथा नहाने (विभूषा) के लिए भी जल का प्रयोग कर सकते हैं।" (यह बौद्ध श्रमणों का मत है) (इस तरह अपने शास्त्र का प्रमाण देकर) वे नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा जलकाय के जीवों की हिंसा करते हैं। २९. अपने शास्त्र का प्रमाण देने पर (जलकाय के जीवों की हिंसा करने वाले साधु) हिंसा के पाप से विरत नहीं हो सकते। ३०. जो जलकाय के जीवों पर शस्त्र प्रयोग करता है, वह इन आरंभों (जीवों की वेदना तथा हिंसा के दोष) से निवृत्त नहीं हो पाता है। जो जलकायिक जीवों पर शस्त्र प्रयोग नहीं करता, वह आरंभों से अर्थात् हिंसा-दोष से मुक्त होता है। ३१. यह जानकर बुद्धिमान मनुष्य स्वयं जलकाय का समारंभ नहीं करे, दूसरों से न करवाए और उसका समारंभ करने वालों का अनुमोदन भी न करे। ३२. जिसको जल-सम्बन्धी समारंभ का ज्ञान होता है, वही परिज्ञात कर्मा (कर्मों का त्यागी) मुनि होता है। -ऐसा मैं कहता हूँ। ॥ तृतीय उद्देशक समाप्त ॥ आचारांग सूत्र (४०) Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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