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________________ SE (Also watch those) who pretend to be homeless. They indulge in sinful activities related to water with various types of weapons. Along with, they also destroy water-bodied beings and various other types of beings thriving in water. २५. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाइ-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव उदयसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा उदयसत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा उदयसत्थं समारंभंते समणुजाणइ। ___ तं से अहियाए तं से अबोहीए। ___ २६. से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय। सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवइ-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए। इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदयकम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अण्णे वऽणेगरूवे पाणे विहिंसइ। __२५. इस विषय में भगवान ने परिज्ञा (विवेक) का निरूपण किया है। ___ जो अपने वर्तमान जीवन के लिए; प्रशंसा, सम्मान और पूजा के लिए; जन्म, मरण और मोक्ष के लिए; दुःखों का प्रतीकार करने के लिए (इन कारणों से) वह स्वयं अप्काय की हिंसा करता है, दूसरों से भी हिंसा करवाता है और हिंसा करने वालों का अनुमोदन करत है। यह हिंसा उसके अहित के लिए होती है तथा अबोधि का कारण बनती है। २६. वह साधक हिंसा के कटु परिणामों को समझते हुए संयम-साधना में सावधान हो जाता है। __भगवान से या अनगार मुनियों से सुनकर कुछ मनुष्यों को यह ज्ञात हो जाता है(जैसे-यह अप्कायिक जीवों की हिंसा) कर्मों की ग्रन्थि है, मोह है, मृत्यु का कारण है तथा नरक का हेतु है। फिर भी मनुष्य इस जीवन की सुख-सुविधा में आसक्त रहता है। वह तरह-तरह के शस्त्रों से उदक-काय की हिंसा-क्रिया में संलग्न होकर अप्कायिक जीवों की हिंसा करता है। १. आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने भगवतीसूत्र (१/३) का सन्दर्भ देकर यह बताया है कि पृथ्वीकायिक जीवों के समान ही अप्काय, तेजस्काय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय और वायुकाय के जीवों को भी छेदन-भेदन से कष्टानुभूति होती है। शस्त्र परिज्ञा : प्रथम अध्ययन ( ३५ ) Shastra Parijna : Frist Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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