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________________ Totale le lo o और जोर जोर और alo पृथ्वीकायिक जीवों का वेदना - बोध १५. से बेमि २. अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे, १. अप्पेगे पादमब्भे, अपेगे पादमच्छे, ३. अप्पेगे जंघमब्भे, अपेगे जंघमच्छे, ५. अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, ७. अप्पेगे णाभिमब्भे, अप्पेगे णाभिमच्छे, ९. अप्पेगे पासमब्भे, अप्पेगे पासमच्छे, ११. अप्पेगे उरमब्भे, अप्पेगे उरमच्छे, १३. अप्पेगे थणमब्भे, अप्पेगे थणमच्छे, १५. अप्पेगे बाहुमब्भे, अपेगे बाहुमच्छे, अप्पे गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, ४. अप्पेगे जाणुमब्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, ६. अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे, ८. अप्पेगे उदरमब्भे, अप्पेगे उदरमच्छे, १०. अप्पेगे पिट्ठिमब्भे, अप्पेगे पिट्ठिमच्छे, १२. अप्पेगे हिययमब्भे, अप्पेगे हिययमच्छे, १४. अप्पेगे खंधमब्भे, अप्पेगे खंधमच्छे, १६. अप्पेगे हत्थमब्भे, अप्पेगे हत्थमच्छे, १७. अप्पेगे अंगुलिमब्भे, अप्पेगे अंगुलिमच्छे, १८. अप्पेगे हमब्भे, अप्पेगे णहमच्छे, १९. अप्पेगे गीवमब्भे, अप्पेगे गीवमच्छे, २०. अप्पेगे हणुयमब्भे, अप्पेगे हणुयमच्छे, २१. . अप्पेगे होट्ठमब्भे, अप्पेगे होट्ठमच्छे, २२. अप्पेगे दंतमब्भे, अप्पेगे दंतमच्छे, २३. अप्पेगे जिब्भमब्भे, अप्पेगे जिब्भमच्छे, २४. अप्पेगे तालुमब्भे, अप्पेगे तालुमच्छे, २५. अप्पेगे गलमब्भे, अप्पेगे गलमच्छे, २६. अप्पेगे गंडमब्भे, अप्पेगे गंडमच्छे, २७. अप्पेगे कण्णमब्भे, अप्पेगे कण्णमच्छे, २८. अप्पेगे णासमब्भे, अप्पेगे णासमच्छे, २९. अप्पेगे अच्छिमब्भे, अपेगे अच्छिमच्छे, ३०. अप्पेगे भमुहमब्भे, अप्पेगे भमुहमच्छे, ३१. अप्पेगे णिडालमब्भे, अप्पेगे णिडालमच्छे, ३२. अप्पेगे सीसमब्भे, अप्पेगे सीसमच्छे। अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए । १५. मैं कहता हूँ ( पृथ्वीकायिक जीव जन्म से इंद्रिय - विकल - अंध, बधिर, मूक, पंगु और अवयवहीन मनुष्य की भाँति अव्यक्त चेतना वाले होते हैं) जैसे कोई किसी जन्मान्ध व्यक्ति को (भाला, सुई आदि से) भेदन करे या ( तलवार आदि से ) छेदन करे, ( तब उसे जैसी कष्ट की अनुभूति होती है, वैसी ही पीड़ानुभूति पृथ्वीकायिक जीवों को होती है ।) ( जैसे कोई किसी इन्द्रिय- सम्पन्न मनुष्य के ) (१) पैर में, (२) टखने पर, (३) जंघा, (४) घुटने, (५) ऊरु, (६) कटि, (७) नाभि, (८) उदर, (९) पार्श्व -पसली पर, शस्त्र परिज्ञा प्रथम अध्ययन ( २५ ) Shastra Parijna: Frist Chapter Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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