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________________ NAXOXOXOXOXOXOXOPCORPCINCI A POOPXONOPOPODACOPAC होंगे। मैं उनका देह पर ममत्व नहीं रखते हुए सम्यक् प्रकार से सहन करूँगा। भगवान ने दीक्षा लेते ही अपने शरीर का व्युत्सर्ग कर दिया था। व्युत्सर्जन की कसौटी पर अपने शरीर को कसने के लिए लाढ़ देश जैसे दुर्गम और दुश्चर क्षेत्र में विचरण किया। आवश्यक चूर्णि (पूर्व भाग, पृ. २९०) में बताया गया है कि भगवान यह चिन्तन करते हैं कि 'अभी मुझे बहुत से कर्मों की निर्जरा करनी है, इसलिए लाढ़ देश में जाऊँ। वहाँ अनार्य लोग हैं, वहाँ कर्मनिर्जरा के अवसर अधिक उपलब्ध होंगे।' मन में इस प्रकार का विचार करके भगवान लाढ़ देश के लिए चल पड़े। ___ इतिहास एवं भूगोल के अनुसार पता चलता है कि वर्तमान में वीरभूम, सिंहभूम एवं मानभूम (धनबाद आदि) जिले तथा पश्चिम बंगाल के तमलूक, मिदनापुर, हुगली तथा बर्दवान जिले का हिस्सा लाढ़ देश माना जाता था। ___ आचारांग चूर्णि में बताया है-'लाढ़ देश पर्वतों, झाड़ियों और घने जंगलों के कारण बहुत दुर्गम था, उस प्रदेश में नुकीली घास बहुत होती थी। चारों ओर पर्वतों से घिरा होने के कारण वहाँ सर्दी और गर्मी दोनों ही अधिक पड़ती थीं। इसके अतिरिक्त वर्षा ऋतु में वर्षा अधिक होने से वहाँ दलदल हो जाती जिससे डांस, मच्छर, जलौका आदि अनेक जीव-जन्तु पैदा हो जाते थे। लाढ़ देश के वज्रभूमि और सुम्हभूमि नामक जनपदों में नगर बहुत कम थे। गाँव में बस्ती भी बहुत कम होती थी। वहाँ प्रायः अनार्य और आदिवासी लोग रहते थे। लाढ़ देश के लोग साधुओं से परिचित न होने के कारण वे देखते ही उनसे उपद्रव करते थे। कई कुतूहलवश एवं जिज्ञासावश प्रश्न करते, परन्तु भगवान मौन रहते, तो वे उत्तेजित होकर या शंकाशील होकर उन्हें पीटने लग जाते। भगवान को नग्न देखकर कई बार तो वे गाँव में प्रवेश नहीं करने देते थे। लाढ़ देश में तिल नहीं होते थे, गाएँ भी बहुत कम थीं, इसलिए वहाँ घी-तेल सुलभ नहीं था, वहाँ के लोग रूखा-सूखा भोजन करते थे, इसलिए स्वभाव से भी रूखे थे। बात-बात में उत्तेजित होना, गाली देना या झगड़ा करना, उनका स्वभाव था। घास से या वृक्ष छाल से शरीर ढंके रहते थे। भगवान को भी प्रायः रूखा-सूखा आहार मिलता था। भगवान मध्याह्न में भोजन लेने जाते वहाँ उन्हें ठंडे चावल पानी में भिगोकर रखे हए और उड़द की थेडी दाल मिलती, अम्ल रस (इमली) मिलती। नमक नहीं मिलता। वहाँ कुत्तों का बहुत अधिक उपद्रव था। वहाँ के कुत्ते बड़े खूख्वार थे। वहाँ के निवासी या उस प्रदेश में विचरण करने वाले अन्यतीर्थिक भिक्षु कुत्तों से बचाव के लिए लाठी और डण्डा रखते थे, लेकिन भगवान तो परम अहिंसक थे, उनके पास न लाठी थी, न डण्डा। इसलिए कुत्ते निःशंक होकर उन पर हमला कर देते थे। कई अनार्य लोग छू-छू करके कुत्तों को बुलाते और भगवान को काटने के लिए उकसाते थे। ॥ तृतीय उद्देशक समाप्त ॥ उपधान-श्रुत : नवम अध्ययन ४९३ ) Upadhan-Shrut: Ninth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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