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________________ ISROD DADRAPARDARP46940PROPROPRIOPARDANAPATOPATOPARODATOPATORRUSTRUSHRUGARUDRAugal अट्ठमो उद्देसओ अष्टम उद्देशक LESSON EIGHT आनुपूर्वी अनशन __ २३०. अणुपुव्येण विमोहाइं जाइं धीरा समासज्ज। __ वसुमंतो मतिमंतो सव्वं णच्चा अणेलिसं॥ २३०. मोह से मुक्त होने की जो अनुक्रमशः विधि बताई गई है। धैर्यवान, ज्ञानी, संयमी भिक्षु उस श्रेष्ठ विधि को जानकर समाधि को प्राप्त करे। ANUPURVI FAST 230. The gradual process of getting rid of fondness has been stated. A patient, sagacious and disciplined ascetic should understand that unique process and attain samadhi (absolute involvement in profound meditation). विवेचन-समाधिमरण के लिए किया जाने वाला आहार आदि का त्याग अनशन कहलाता है। अनशन दो प्रकार का होता है-क्रम-प्राप्त और आकस्मिक, अथवा सपराक्रम और अपराक्रम अथवा अव्याघात और सव्याघात। क्रम-प्राप्त अनशन को यहाँ आनुपूर्वी कहा गया है। नियुक्ति एवं टीका में इसका क्रम इस प्रकार बताया है-भिक्षु प्रव्रज्या ग्रहण करके शिक्षा (ज्ञान) प्राप्त करते हैं। सूत्र अर्थ का ग्रहण करते हैं, फिर जनपद विहार में संलग्न रहते हैं। क्रमशः शरीर की अवस्था आने पर, शक्ति क्षीण हो जाने पर समाधिपूर्वक शरीर का त्याग करना चाहता है। समाधिमरण के लिए वह अनशन करता है। अनशन के मुख्य तीन प्रकार हैं(१) भक्त प्रत्याख्यान-इसका वर्णन पाँचवें उद्देशक में है, (२) इंगिनीमरण (छठा उद्देशक), तथा (३) पादपोपगमन (प्रायोपगमन) सातवाँ उद्देशक। ___ तीन अनशनों में से किसी एक का चुनाव करके (१) आहार, (२) उपधि, तथा (३) शरीर-इन तीनों से मुक्त होने का निरन्तर अभ्यास करना, अन्त में सबसे क्षमा याचना, आलोचना-प्रायश्चित्त द्वारा शुद्धीकरण करके समाधिपूर्वक शरीर-विसर्जन करना। इसी को यहाँ आनुपूर्वी अनशन कहा है। आचार्यों के अनुसार "उपसर्गे, दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निष्प्रतीकारे। धर्मार्थं तनुविमोचनमाहु संल्लेखनामार्याः॥” -रत्नकरण्डक श्रावकाचार १२२ दुर्भिक्ष, बुढ़ापा, दुःसाध्य मृत्युदायक रोग और शरीर-बल की क्रमशः क्षीणता आदि होने पर संलेखना की जाती है। आचारांग सूत्र Illustrated Acharanga Sutra " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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