SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | पंचमो उद्देसओ पंचम उद्देशक LESSON FIVE * द्विवस्त्रधारी श्रमण की समाचारी ___ २१७. जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवुसिए गाय तइएहिं तस्स णं णो एवं भवइतइयं वत्थं जाइस्सामि। २१८. से अहेसणिज्जाइं वत्थाइं जाएज्जा जाव एवं खलु तस्स भिक्खुस्स सामग्गियं। अह पुण एवं जाणेज्जा-उवाइक्कंते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे', अहापरिजुण्णाई वत्थाइं परिहवेज्जा, अहापरिजुण्णाई वत्थाई परिट्ठवेत्ता अदुवा एगसाडे, अदुवा अचेले लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमण्णागए भवइ। __ जमेयं भगवया पवेइयं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वयाए सम्मत्तमेव समभिजाणिया। २१७. जिस भिक्षु ने दो वस्त्र और तीसरा (एक) पात्र रखने की प्रतिज्ञा की है, उसके मन में यह विकल्प नहीं उठता कि मैं तीसरे वस्त्र की याचना करूँ। २१८. (यदि दो वस्त्रों से कम हो तो) भिक्षु अपनी मर्यादानुसार निर्दोष वस्त्रों की याचना करे। - जब भिक्षु यह समझे कि हेमन्त ऋतु व्यतीत हो गयी है, ग्रीष्म ऋतु आ गयी है, तब वह जो वस्त्र जीर्ण हो गये हों, उनका विसर्जन कर दे। (यदि वस्त्र की आवश्यकता प्रतीत हो तो) वह एक शाटक (एक चादर) में रहे, या वह अचेल (वस्त्ररहित) हो जाये। वह लाघवता का विचार करता हुआ (क्रमशः) वस्त्र का त्याग करे (इस प्रकार अल्पवस्त्र वाले) मुनि को उपकरण ऊनोदरी तथा कायक्लेश तप सहज ही प्राप्त हो जाता है। ___ भगवान ने मुनि के आचार का जिस रूप में प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से सर्वात्मना (सम्पूर्ण रूप में) समत्व को सम्यक् प्रकार से जाने; उसका आचरण करे। ROUTINE OF AN ASCETIC WITH TWO CLOTHING 217. An ascetic who has taken a vow of possessing two pieces of cloth and a bowl does not desire to beg for a third piece of cloth. विमोक्ष : अष्टम अध्ययन ( ४०९ ) Vimoksha : Eight Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy