SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___Kalajna-one who is aware of time. All these adjectives have been used to show the abilities of an ascetic. These terms have been explained in aphorism 89 of the fifth lesson of the chapter two titled Lok Vijaya. Niyati-one who performs ritual practices resolutely. अग्नि-सेवन-विमोक्ष ___ २१२. तं भिक्खू सीयफासपरीवेवमाणगयं उवसंकमित्तु गाहावइ बूया-आउसंतो समणा ! णो खलु ते गामधम्मा उव्वाहंति ? ___ आउसंतो गाहावती ! णो खलु मम गामधम्मा उव्वाहति। सीयफासं णो खलु अहं संचाएमि अहियासेत्तए। ___णो खलु मे कप्पति अगणिकायं उज्जालित्तए वा पज्जालित्तए वा कायं आयावित्तए वा पयावित्तए वा अण्णेसिं वा वयणाओ। २१३. सिया एवं वदंतस्स परो अगणिकायं उज्जालेत्ता पज्जालेत्ता कायं आयावेज्जा वा पयावेज्जा वा। तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता अणासेवणाए। त्ति बेमि। ॥ तइओ उद्देसओ समत्तो ॥ २१२. (शीत ऋतु में) शीत-स्पर्श से काँपते हुए शरीर वाले भिक्षु को देखकर पास में आकर कोई गृहपति इस प्रकार कहे-आयुष्मान् श्रमण ! क्या तुम्हें ग्रामधर्म (इन्द्रिय-वासना) तो व्यथित नहीं कर रहे हैं ? (इस पर मुनि कहता है) आयुष्मान् गृहपति ! मुझे ग्रामधर्म पीड़ित नहीं कर रहे हैं, किन्तु मेरा शरीर दुर्बल होने के कारण मैं शीत-स्पर्श को सहन करने में समर्थ नहीं हूँ (इसलिए मेरा शरीर शीत से प्रकम्पित हो रहा है)। (तुम अग्नि क्यों नहीं जला लेते? गृहपति के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर मुनि कहता है-) अग्निकाय को उज्ज्वलित करना, प्रज्ज्वलित करना, उससे शरीर को थोड़ा-सा भी तपाना या दूसरों को वचन से कहकर अग्नि प्रज्ज्वलित करवाना मुझे कल्पता नहीं है। २१३. इस प्रकार बोलने पर कदाचित् वह गृहस्थ अग्निकाय को उज्ज्वलित और प्रज्ज्वलित करके साधु के शरीर को थोड़ा तपाए या विशेष रूप से तपाए। उस अवसर पर भिक्षु अपनी बुद्धि से विचारकर आगम आज्ञा को ध्यान में रखता हुआ उस गृहस्थ से कहे कि मैं अग्नि का सेवन नहीं कर सकता" __-ऐसा मैं कहता हूँ। विमोक्ष : अष्टम अध्ययन ( ३९७ ) Vimoksha : Eight Chapter * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy