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________________ तइओ उद्देसओ उपकरणों की लघुता १८८. एयं खु मुणी आयाणं सदा सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता । तृतीय उद्देशक जे अचेले परिवुसिए तस्स णं भिक्खुस्स णो एवं भवइ - परिजुण्णे मे वत्थे, वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूई जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीविस्सामि, उक्क सिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि पाउणिस्सामि । LESSON THREE अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंस - मसगफासा फुसंति । एयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अहियासेइ अचेले । लाघवं आगममाणे । तवे से अभिसमण्णागए भवति । जहेयं भगवया पंवेइयं । तमेव अभिसमेच्चा सव्वओ सव्वत्ताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया । एवं तेसिं महावीराणं चिरराइं पुव्वाई वासाइं रीयमाणाणं दवियाणं पास अहियासियं । १८४. सदा सु-आख्यात ( सम्यक् प्रकार से कथित) धर्म वाला विधूतकल्पी वह मुनि आदान (मर्यादा से अधिक वस्त्रादि) का त्याग कर देता है । जो अचेलक रहता है, उस भिक्षु के मन में ऐसा विकल्प उत्पन्न नहीं होता कि 'मेरा वस्त्र सब तरह से जीर्ण हो गया है, इसलिए मैं वस्त्र की याचना करूँगा, फटे वस्त्र को सीने के लिए धागे की याचना करूँगा, फिर सुई की याचना करूँगा, फिर उस वस्त्र को साधूँगा, उसे सीऊँगा, छोटा है, इसलिए दूसरा टुकड़ा जोड़कर बड़ा बनाऊँगा; बड़ा है, इसलिए फाड़कर छोटा बनाऊँगा, फिर उसे पहनूँगा और शरीर को ढकूँगा । अथवा अचेल साधना करते हुए मुनि को बार-बार तिनकों (घास के तृणों) का स्पर्श, सर्दी और गर्मी का स्पर्श तथा डांस और मच्छरों का स्पर्श पीड़ित करता है।' अचेल रहने वाला मुनि उनमें से एक प्रकार के या दूसरे नाना प्रकार के स्पर्शो ( परीषहों) को सहन करता है। वह अपने आप को लाघवयुक्त (हल्का) मानता हुआ तप से सम्पन्न होता है । Jain Education International भगवान ने जिस रूप में अचेल - साधना का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जान-समझकर, सब प्रकार से सर्वात्मना जाने एवं समत्व का सेवन करे । आचारांग सूत्र ( ३३६ ) Illustrated Acharanga Sutra For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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