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________________ से अकुट्टे व हए व लूसिए वा पलियं पगंथं अदुवा पगंथं। अतहेहिं सद्द-फासेहिं इति संखाए। ___ एगयरे अण्णयरे अभिण्णाय तितिक्खमाणे परिव्वए। जे य हिरी जे य अहिरीमणा। १८५. कई एक मुनिधर्म को स्वीकार करके, वस्त्र-पात्र आदि में ममत्वरहित होकर, इन्द्रिय और मन को समाहित करके विचरण करते हैं। ___ वह (काम-भोगों में) अलिप्त/अनासक्त और (तप, संयम आदि में) सुदृढ़ रहकर (धर्माचरण करते हैं)। समग्र (गृद्धि) आसक्ति को छोड़कर वह (धर्म के प्रति) प्रणतसमर्पित महामुनि होता है। __(वह महामुनि) सर्वथा संग (आसक्ति) का त्याग करके (यह भावना करे कि-) 'मेरा कोई नहीं है', इसलिए मैं अकेला हूँ'। वह यतनाशील अनगार विरत तथा सब प्रकार से मुण्डित होकर पैदल विहार करता है। ___ जो अल्पवस्त्र या निर्वस्त्र (जिनकल्पी) हैं, वह अनियतवासी रहता है या अन्त-प्रान्तभोजी होता है, वह ऊनोदरी तप का भी सम्यक् प्रकार से अनुशीलन करता है। (कदाचित्) कोई मनुष्य (अचेल अवस्था में देखकर) उस मुनि को गाली देता है, मारता-पीटता है, उसके केश उखाड़ता या खींचता है (अथवा अंग-भंग करता है) पहले किये हुए किसी दुष्कर्म की याद दिलाकर कोई बक-झक करता है (या घृणित व असभ्य शब्द-प्रयोग करके उसकी निन्दा करता है)। कोई व्यक्ति तथ्यहीन शब्दों द्वारा (सम्बोधित करता है), या झूठा दोषारोपण करता है; ऐसी स्थिति में मुनि सम्यक् चिन्तन द्वारा समभाव से सहन करे। ___उन एक जातीय (अनुकूल) और भिन्न जातीय (प्रतिकूल) परीषहों को उत्पन्न हुआ जानकर समभाव से सहन करता हुआ मुनि संयम में विचरण करे। लज्जाकारी (यांचना, अचेल आदि) और अलज्जाकारी (शीत, उष्ण आदि) परीषंहों को सम्यक् प्रकार से सहन करता हुआ विचरण करे। PRINCIPLE OF DETACHMENT ___185. After accepting the ascetic path, many individuals get free of any attachment or fondness for garb and utensils (ascetic equipment) and move about exercising discipline over senses and mind. He remains uninvolved or detached (with carnal pleasures) and steadfast (in austerities and discipline). Free of all आचारांग सूत्र ( ३२६ ) Mustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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