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________________ विवेचन - इस सूत्र में बताया है - कुछ एक महान् वीर पुरुष मुक्ति-मार्ग का उपदेश सुनकर साधना के लिए विशेष पराक्रम करते हैं। 'अपि' शब्द के द्वारा चूर्णिकार यह सूचित करते हैं कि कुछ एक बिना सुने ही, जाति-स्मृति आदि ज्ञान से जानकर भी संयम आराधना करते हैं, जैसेप्रत्येकबुद्ध । साथ ही जिन्हें आत्म-प्रज्ञा - आत्मा के हित-अहित का ज्ञान नहीं है, वे अपने अज्ञान के कारण, मोहोदय के कारण तथा पूर्वाग्रहों के कारण विषाद को प्राप्त होते हैं। इस सत्य को समझाने के लिए सरोवर तथा वृक्ष का दृष्टान्त दिया गया है। ( १ ) सरोवर - एक सघन शैवाल और कमल-पत्रों (जल - वनस्पतियों) से आच्छादित सरोवर था। उसमें अनेक प्रकार के छोटे-बड़े जलचर जीव निवास करते थे। एक दिन उस शैवाल में एक छोटा-सा छिद्र हो गया। एक कछुआ भटकता हुआ उसी छिद्र (विवर) के पास आ पहुँचा। उसने छिद्र से बाहर गर्दन निकाली, नील आकाश में तारों के बीच चन्द्रमा को चमकते देखकर वह एक विचित्र आनन्द में मग्न हो उठा। उसने सोचा- 'मैं अपने पारिवारिक जनों को भी ऐसा अनुपम दृश्य दिखलाऊँ।' उन्हें बुलाने के लिए चल पड़ा। परिवार जनों को साथ लेकर छिद्र को खोजता हुआ आया। किन्तु इतने विशाल सरोवर में उस लघु छिद्र का कोई पता नहीं चला, वह विवर उसे पुनः प्राप्त नहीं हुआ। दृष्टान्त का भाव इस प्रकार है - कछुए की भाँति जीव है, महाहृद के समान संसार है जो कर्मरूप अज्ञान शैवाल से आवृत है। पूर्व पुण्योदय के कारण सम्यक्त्वरूपी छिद्र (विवर) या धर्म को प्राप्त हो गया । किन्तु परिवार के मोहवश वह उन्हें यह बताने के लिए वापस घर जाता है, गृहवासी बनता है, और आसक्त होकर भटक जाता है। मोह की सघनता के कारण पुनः वह अवसर प्राप्त नहीं होता । (२) वृक्ष-सर्दी, गर्मी आदि प्राकृतिक आपत्तियों तथा फल-फूल तोड़ने के इच्छुक लोगों द्वारा पीड़ा, प्रहार आदि को सहते हुए अपने स्थान पर स्थित रहता है, वैसे ही गृहवास में स्थित मनुष्य दरिद्रता, अपमान आदि दुःखों, पीड़ाओं तथा महारोगों से आक्रान्त होने पर भी गृहवास का त्याग नहीं कर पाते। एक बार सत्य का दर्शन कर पुनः मोह में मूढ़ होकर भ्रष्ट आत्मा का प्रथम उदाहरण है। दूसरा उदाहरण गृहवास में आसक्त आत्मा का है। Elaboration-This aphorism informs that some very brave individuals make sincere efforts towards spiritual practices after listening to preaching about the path of liberation. According to the commentator (Churni ), the use of the word api (also) indicates that there are also some individuals who practice discipline of their own ( ३१० ) आचारांग सूत्र Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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