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________________ छट्टो उद्देसओ षष्ठ उद्देशक LESSON SIX आज्ञा-निर्देश १७३. अणाणाए एगे सोवट्ठाणा, आणाए एगे निरुवट्ठाणा। एयं ते मा होउ, एयं कुसलस्स दंसणं। तद्दिट्टीए तम्मुत्तीए तप्पुरकारे तस्सण्णी तण्णिवेसणे। अभिभूय अदक्खू। अणभिभूए पभू णिरालंबणयाए। जे महं अबहिमणे। पवाएण पवायं जाणेज्जा। सहसम्मइयाए परवागरणेणं अण्णेसिं वा सोच्चा। १७३. कुछ पुरुष आज्ञा के विपरीतगामी होते हैं और कुछ साधक आज्ञा के परिपालन 8 में आलसी होते हैं। यह (कुमार्ग में उद्यम और सुमार्ग में आलस्य) तुम्हारे जीवन में न आये, यह कुशलतीर्थंकर का दर्शन (आदेश) है। साधक पुरुष (वीतराग तीर्थंकर के दर्शन में) अपनी दृष्टि नियोजित करे, उनके दर्शनानुसार मुक्ति में अपनी मुक्ति माने, उसी में तन्मय हो जाये, सब कार्यों में उसे आगे करके प्रवृत्त हो, उसी के संज्ञान-स्मरण में संलग्न रहे, उसी में चित्त को स्थिर कर दे, उसी का अनुसरण करे। जिसने (परीषह-उपसर्गों-घातिकर्मों को) पराजित कर दिया है, उसी ने तत्त्व का साक्षात्कार किया है, जो (विघ्न-बाधाओं से) अभिभूत नहीं होता, वह निरालम्बी (स्वाश्रयी) होता है। जो महान् (लघुकर्मा) होता है, उसका मन (संयम से) बाहर नहीं जाता। प्रवाद (अर्थात् सर्वज्ञ तीर्थंकरों के वचन) से, प्रवाद (अर्थात् विभिन्न दार्शनिकों या अन्यतीर्थिकों) के वाद को जानना, परीक्षण करना चाहिए। (अथवा) पूर्वजन्म की स्मृति से, तीर्थंकरों से प्रश्न का उत्तर पाकर या किसी अतिशय ज्ञानी या निर्मल श्रुतज्ञानी आचार्यादि से सुनकर (प्रवाद के यथार्थ तत्त्व को जाना जा सकता है)। * आचारांग सूत्र (२९४ ) Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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