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________________ १० १० ११० विवेचन - जिस तत्त्व का ज्ञान सरलतापूर्वक होता है, वह सुखाधिगम कहलाता है | जिसका ज्ञान कठिन होता है, वह दुरधिगम है। शिष्य के मन में दुरधिगम अर्थ के प्रति विचिकित्सा या शंका उत्पन्न होती है। यहाँ बताया है कि विचिकित्सा से जिसका चित्त डाँवाडोल या कलुषित रहता है, वह आचार्यादि द्वारा समझाए जाने पर भी सम्यक्त्व - ज्ञान - चारित्रादि के विषय में समाधान नहीं पाता । उसका मन चंचल बना रहता है। विचिकित्सा के सम्बन्ध में टीकाकार ने विवेचन करते हुए बताया है - ज्ञान, दर्शन और चारित्र तीनों विषयों में विचिकित्सा हो सकती है। जैसे - शास्त्र में बताया ज्ञान सच्चा है या झूठा ? मैं भव्य हूँ या नहीं ? जो नौ तत्त्व या षड्द्रव्य बताए हैं, क्या ये सत्य हैं ? अर्हन्त और सिद्ध कोई होते हैं या यों ही हमें डराने के लिए इनकी कल्पना की गई है ? इतने कठोर तप, संयम और महाव्रतरूप चारित्र का कुछ फल मिलेगा या यों ही व्यर्थ का कष्ट सहना है? ये और इस प्रकार की शंकाएँ साधक के चित्त को अस्थिर और असमाधियुक्त बना देती हैं। इस विचिकित्सा जनित खिन्नता को मिटाकर मनः समाधि प्राप्त करने का आधार सूत्र है--' तमेव सच्चं.' आदि। 'समाधि' - समाधि के चार अर्थ होते हैं - ( १ ) मन का समाधान या संतुष्टि, (२) शंका का निराकरण, (३) चित्त की एकाग्रता, और (४) ज्ञान - दर्शन - चारित्र रूप सम्यक् भाव । भिन्न-भिन्न सूत्रों के अनुसार समाधि के अनेक अर्थ होते हैं। जैसे (१) मोक्ष - मार्ग में स्थित होना', ( २ ) राग-द्वेष - परित्याग रूप धर्मध्यान २, (३) अच्छा स्वास्थ्य, (४) चित्त की प्रसन्नता व स्वस्थता ४, (५) नीरोगता ५, (६) योग ६, (७) सम्यग्दर्शन मोक्ष आदि विधि, (८) चित्त की एकाग्रता ', (९) प्रशस्त भावना, अभिधान राजेन्द्र कोष में भाग ७, पृ. ४१९-२० में दशवैकालिक'० में चार प्रकार की समाधि का विस्तृत वर्णन है। Elaboration-That knowledge of fundamentals which is easily acquired is called sukhadhigam (easy to acquire). That which is acquired with difficulty is duradhigam (difficult to acquire). A doubt arises in the mind of a disciple about difficult to understand concepts. It is explained here that a disciple whose mind is poisoned by doubt and who wavers due to skepticism, does not attain clarity with respect to righteousness, knowledge and conduct in spite of explanations by the acharya. His mind remains wavering. १. सम. २० २. सूत्रकृत १/२/२ ३. आव. मल. २ ४. सम. ३२ आचारांग सूत्र Jain Education International ५. व्यव. उ. १ ६. उत्तरा २ ७. सूत्रकृत १/१३ ८. द्वात्रि. द्वा. ११ ( २८६ ) For Private Personal Use Only ९. स्थानांग २/३ १०. अध्ययन ९ में विनयसमाधि, श्रुतसमाधि, तपःसमाधि, आचारसमाधि का वर्णन है। Illustrated Acharanga Sutra www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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