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________________ सत्थ परिण्णा : पढमं अज्झयणं शस्त्र परिक्षा : प्रथम अध्ययन आमुख आचारांग सूत्र का प्रथम अध्ययन 'शस्त्र परिज्ञा' नाम से प्रसिद्ध है। हिंसा के उपकरण या साधन को शस्त्र कहते हैं। जिसके लिए जो विनाशकारी होता है, वह उसके लिए शस्त्र है - "जं जस्स विणासकारणं तं तस्स सत्थं भण्णति । ” १ तलवार आदि हिंसा के बाह्य साधन द्रव्य शस्त्र हैं। राग-द्वेषयुक्त परिणाम भाव शस्त्र हैं। आचार्यों ने परिज्ञा का अर्थ किया है- विवेक और संयम । तत्त्व का यथार्थ परिज्ञान करना 'ज्ञ - परिज्ञा' - विवेक है तथा हिंसा के साधनों का त्याग करना 'प्रत्याख्यान परिज्ञा' - संयम है। 'शस्त्र परिज्ञा' का भावार्थ है- हिंसा के स्वरूप और साधनों का ज्ञान प्राप्त करके तथा उसके कटु परिणामों को जानकर उनका त्याग करना । हिंसा से निवृत्त होना अहिंसा है। अहिंसा का आधार है-आत्मा । आत्मा के अस्तित्व का बोध होने पर ही अहिंसा में आस्था दृढ़ होती है, संयम में पुरुषार्थ किया जाता है और तभी अहिंसा का सम्यक् परिपालन किया जा सकता है। इस अध्ययन में मुख्य रूप में षड्जीवनिकाय की हिंसा से निवृत्त होने का उपदेश है। प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देशक में सर्वप्रथम 'आत्म-संज्ञा' - आत्म बोध की चर्चा की गई है। आत्म-बोध होने पर आत्मा के अस्तित्त्व में विश्वास होता है, तब वह आत्मवादी बनता है । आत्मवादी लोक के अस्तित्त्व में विश्वास करता है इसलिए वह लोकवादी भी है। लोक का आधार कर्म है और कर्म का मूल क्रिया है। अतः वह कर्मवादी तथा क्रियावादी भी है। इस प्रकार आत्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद और क्रियावाद का सम्यक् ज्ञान होने पर ही अहिंसा का सम्यक् परिपालन किया जा सकता है। अतः इस अध्ययन में आत्म- अस्तित्त्व की स्थापना के बाद हिंसा - अहिंसा की चर्चा की गई है। + हिंसा के हेतु / निमित्त कारणों की चर्चा, षट्काय के जीवों का स्वरूप, उनकी सचेतनता की सिद्धि, हिंसा से होने वाला परिताप, कर्मबन्ध तथा उससे विरत होने का उपदेश आदि विषयों का वर्णन प्रथम अध्ययन के सात उद्देशकों में प्रस्तुत किया गया है। ( आचारांग नियुक्ति, गाथा २५) १. नि. चू., उ. १ अभिधानराजेन्द्र, भाग ७, पृष्ठ ३३१ - 'सत्य' शब्द । शस्त्र परिज्ञा : प्रथम अध्ययन ३ ) Jain Education International For Private Personal Use Only Shastra Parijna: Frist Chapter www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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