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________________ ARDAROPAYOROATortoiTOARDIRECTROSRODAREDMR.RROREGARDARCOARDARODARADARASARAPAROPAROPARATION 8. इस सूत्र के आधार पर आसव, परिस्रव, अनानव और अपरिस्रव को लेकर चतुर्भंगी बनती - है, वह क्रमशः इस प्रकार है (१) जो आस्रव हैं, वे परिस्रव हैं; जो परिस्रव हैं, वे आस्रव हैं। (२) जो आस्रव हैं, वे अपरिस्रव हैं; जो अपरिस्रव हैं, वे आस्रव हैं। (३) जो अनास्रव हैं, वे परिस्रव हैं; जो परिस्रव हैं, वे अनास्रव हैं। (४) जो अनास्रव हैं, वे अपरिस्रव हैं; जो अपरिस्रव हैं, वे अनास्रव हैं। इस सूत्र में पहले और चौथे भंग का निर्देश है। दूसरा भंग शून्य है। जिसको आस्रव हो उसे निर्जरा न हो-ऐसा कभी नहीं होता है। तृतीय भंग शैलेशी अवस्था प्राप्त (निष्प्रकम्प-अयोगी) मुनि की अपेक्षा से कहा गया है, उनको आनव नहीं होता; केवल परिस्रव (संचित कर्मों का क्षय) होता है। चौथा भंग मुक्त आत्माओं की अपेक्षा से है। उनके आस्रव और परिसव दोनों ही नहीं होते। वे कर्म के बन्ध और कर्मक्षय दोनों से रहित होते हैं। ____ 'अट्टा वि संता अदुवा पमत्ता'-इस सूत्र का आशय इस प्रकार है-कई लोग अशुभ आसवपापकर्म में पड़े हुए या विषय-सुखों में लिप्त प्रमत्त लोगों को देखकर यह कह देते हैं कि “ये क्या धर्माचरण करेंगे, ये क्या पापकर्मों का क्षय करने के लिए उद्यत होंगे?" किन्तु शास्त्रकार का कथन है कि किसी निमित्त को पाकर कोई व्यक्ति अर्जुनमाली, चिलातीपुत्र आदि की तरहराग-द्वेष के उदयवश पीड़ित (आर्त) भी हो जाएँ अथवा शालिभद्र', स्थूलभद्र आदि की तरह विषय-सुखों में आसक्त-प्रमत्त भी हों तो भी उन कर्मों का क्षयोपशम होने पर धर्म-बोध प्राप्त होते ही जाग्रत होकर कर्मबन्धन के स्थान में धर्ममार्ग अपनाकर कर्मनिर्जरा करने लगते हैं। यह बात सर्वथा सत्य है-'अहासच्चमिणं त्ति बेमि।' ____ आर्त्त दो प्रकार के होते हैं-(१) द्रव्य आर्त्त-अभाव व रोगादि से ग्रस्त। (२) भाव आर्तहिंसा, क्रोध आदि से अभिभूत। प्रमत्त का अर्थ है-विषय मद्य आदि से अभिभूत। Elaboration—The simple meaning of asrava (inflow of karmas) is—the unified good and bad attitude or activity of body, speech and __mind is called yoga (combination); and that is asrava. ___Violence, falsity, stealing, debauchery and inclination for possessions are sources of inflow of bad karmas. The activities inspired by good purpose are sources of inflow of good karmas. There are five categories of asrava (1) Violence, (2) Falsity, (3) Stealing, (4) Cohabitation, and (5) Acquisition. * सम्यक्त्व : चतुर्थ अध्ययन ( २१५ ) Samyaktva : Forth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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