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________________ अशरणता-परिबोध ६५. अप्पं च खलु आउं इहमेगेसिं माणवाणं । तं जहा- सोयपण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं चक्खुपण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं, घाणपण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं, रसपण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं, फासपण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं । अभिक्कतं च खलु वयं संपेहाए तओ से एगया मूढभावं जणयंति । जेहिं वा सद्धिं संवसति तेऽवि णं एगया णियगा पुव्विं परिवयंति, सो ऽवि ते णियगे पच्छा परिवएज्जा । णालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा, तुमं पि तेसिं णालं ताणाए वा सरणाए वा । सेण हसाए, ण किड्डाए, ण रतीए, ण विभूसाए । इच्चेवं समुट्ठिए अहोविहाराए । ६५. फलस्वरूप इस संसार में कुछ मनुष्यों का आयुष्य अल्प होता है। जैसेश्रोत्र-परिज्ञान के परिहीन (दुर्बल या क्षीण ) हो जाने पर, चक्षु-परिज्ञान के परिहीन होने पर, प्राण-परिज्ञान के परिहीन होने पर, रस- परिज्ञान के परिहीन होने पर, स्पर्श- परिज्ञान h परिहीन होने पर ( वह अल्प आयु में ही मृत्यु की ओर अग्रसर होते हैं ) । वय - अवस्था / यौवन तेजी से बुढ़ापे की ओर जा रहा है यह देखकर वह चिन्ताग्रस्त हो जाता है और उसके पश्चात् वह एकदा (इन्द्रिय शक्ति नष्ट होने पर) मूढ़ भाव को प्राप्त हो जाता है। वह जिनके साथ रहता है, वे पारिवारिक जन ( पत्नी - पुत्र आदि) कभी उसका तिरस्कार करने लगते हैं, उसे कटु व अपमानजनक वचन बोलने लगते हैं। बाद में वह भी उन स्वजनों की निन्दा करने लगता है। हे पुरुष ! वे स्वजन तुम्हारी रक्षा करने में या तुझे शरण देने में समर्थ नहीं हैं। तू भी उन्हें त्राण या शरण देने में समर्थ नहीं है । वह वृद्ध मनुष्य न हँसी - विनोद के योग्य रहता है, न क्रीड़ा/खेलने के, न रति सेवन के और न शृंगार आदि के योग्य रहता है। इस प्रकार वृद्ध अवस्था में होने वाली दशा का चिन्तन करके मनुष्य संयम - साधना ( अहोविहार) के लिए प्रस्तुत (उद्यत ) हो जाये । AWARENESS OF ABSENCE OF PROTECTION 65. As a result of it the life-span of some humans in this world is short. Which means-when the faculty of hearing languishes, when the faculty of seeing languishes, when the faculty of smelling languishes, when the faculty of taste आचारांग सूत्र ( ८४ ) Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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