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________________ पढमो उद्देसओ प्रथम उद्देशक LESSON ONE संसार का मूल : आसक्ति ६४. जे गुणे से मूलढाणे, जे मूलढाणे से गुणे। ___ इति से गुणट्ठी महया परियावेणं वसे पमत्ते। तं जहा माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, सुण्हा मे, * सहि-सयण-संगंथ-संथुया मे, विवित्तोवगरण-परियट्टण-भोयण-अच्छायणं मे। . इच्चत्थं गढिए लोए वसे पमत्ते। ___अहो य राओ य परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठाई संजोगट्ठी अट्ठालोभी आलुपे सहसक्कारे विणिविट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो पुणो। ६४. जो गुण (इन्द्रियों का विषय) है, वह (कषायरूप संसार का) मूल स्थानॐ आधार है। जो मूल स्थान है, वह गुण है। _ विषयार्थी पुरुष इस प्रकार अत्यधिक परिताप (भोग अभिलाषा) से प्रमत्त होकर जीवन बिताता है। जैसे कि___ "यह मेरी माता, मेरा पिता, मेरा भाई, मेरी बहन, मेरी पत्नी, मेरा पुत्र, मेरी पुत्री, मेरी पुत्र-वधू, मेरा सखा, मेरा स्वजन-सम्बन्धी-सहवासी, मेरे विविध प्रचुर उपकरण (अश्व, रथ, आसन आदि) परिवर्तन (देने-लेने की सामग्री) भोजन तथा वस्त्र हैं। __इस प्रकार मेरेपन (ममत्व) में आसक्त हुआ पुरुष; प्रमत्त होकर उनके साथ निवास करता है। वह आसक्त पुरुष दिन-रात चिन्ता एवं तृष्णा से परितप्त रहता है। काल या अकाल में (समय-बेसमय अर्थार्जन में) प्रयत्नशील रहता है। वह संयोग का अर्थी होकर, अर्थ का लोभी बनकर, लूट-पाट करने वाला चोर या डाकू बन जाता है। सहसाकारी-दुःसाहसी और बिना विचारे कार्य करने वाला हो जाता है। अनेक प्रकार की आशाओं में उसका चित्त लगा रहता है। वह बार-बार शस्त्र प्रयोग करता है। 9 THE CAUSE OF THE WORLD : ATTACHMENT 64. That which is attribute (subject of sense organs) is the root or basis (cause of the world of passions). That which is root is the attribute. * आचारांग सूत्र ( ८२ ) Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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