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________________ लोगविजओ : बीअं अज्झयणं लोक-विजय: द्वितीय अध्ययन आमुख + द्वितीय अध्ययन का नाम लोक-विजय है। + कुछ विद्वानों का मत है कि इसका प्राचीन नाम 'लोक-विचय' होना चाहिए। + प्रस्तुत अध्ययन की सामग्री को देखते हुए 'विजय' तथा 'विचय' दोनों ही नाम सार्थक लगते हैं। क्योंकि इसमें लोक-संसार का स्वरूप, शरीर की क्षणभंगुरता ज्ञातिजनों की अशरणता, विषयों-पदार्थों की अनित्यता आदि का विचार करते हुए साधक को आसक्ति का बन्धन तोड़ने की हृदयस्पर्शी प्रेरणा दी गई है। आज्ञा-विचय, अपाय-विचय आदि धर्मध्यान के भेदों में भी इसी प्रकार के चिन्तन की मुख्यता रहती है। इस अध्ययन में मुख्य प्रतिपाद्य विषय हैं+ अपने भीतर विद्यमान लोभ-वृत्ति को संतोष के द्वारा जीतें। + जीवन, यौवन और शक्ति को प्रतिक्षण क्षीण होते देखकर संयम में सदा अप्रमत्त रहें। जागरूकता द्वारा प्रमाद को जीतें। + साथ ही संयम में पुरुषार्थ, अप्रमाद तथा साधना में आगे बढ़ने की प्रेरणा, कषाय आदि अन्तरंग शत्रुओं को 'विजय' करने का उद्घोष भी इस अध्ययन में पद-पद पर मुखरित है। + 'विचय'-ध्यान व निर्वेद का प्रतीक है। + 'विजय'-पराक्रम और पुरुषार्थ का बोधक है। प्रस्तुत अध्ययन में ध्यान एवं पुरुषार्थ के दोनों ही विषय समाविष्ट हैं। + नियुक्ति में लोक का आठ प्रकार से निक्षेप करके बताया है कि नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव, पर्याय के भेद से लोक आठ प्रकार का है। प्रस्तुत अध्ययन में 'भाव-लोक' का सम्बन्ध है। इसलिए कहा है “भावे कसायलोगो, अहिगारो तस्स विजएणं।" -१७५ भाव-लोक का अर्थ है-क्रोध, मान, माया एवं लोभरूप कषायों का समूह। यहाँ उस भाव-लोक की विजय का अधिकार है। क्योंकि कषाय-लोक पर विजय प्राप्त करने वाला साधक आचारांग सूत्र ( ७८ ) Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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