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________________ ............... Endsदिसड वरनाणलंभं दंसणमुद्धि समाहिं च ||४|| कर्मस्तवः समाप्तः॥ -कर्मविपाकः ....... [जिनवल्लभः] |Begins ववगयकम्मकलंक वीरं नामिडण कमगइकुसलम् ॥ वो कम्मविवागं गुरुवहठं समासेणं ||१|| HEnds एय गाहाणसय छावटि एक पढिउण || जो गुरु पुछा नाही कम्मविवागं तु सोअइरा ।। १६.॥ कर्मविपाकः समाप्तः || मंगलं महाश्रीः ।। -सत्तरिका प्रकरणम्-वा षष्ठः कर्मग्रन्थः-मागधी चंद्रमहत्तराचाBegins र्यकृतगाया ७० सिद्धपएहि महत्थे (त्थ) बंधोदयसंतपगडिठाणाए [f] || तत्र प्रक्षिसगाबोछ मण संखवं निस्संदि[] दिठिवायस्स ||१|| थाकर्ता देवेंद्राEnds, चार्यः जो एन्थ [जत्थम] पडिपुत्रो अत्यो अप्पागमेण बंधोति [बद्धोति ।। त खमिउण बहुमुया पूरे उणं परिकहि || 06 || सत्तारका सम्मत्ता ।।। -सयगं जिनवल्लभः Beging अरिहंते वंदिता अनुत्तरक्कमे पणमिउण || | बंधसयगे निबद्धं संगहमिणमो पवक्खामि ||१॥ Endsइय कम्मपगडि पगयं संखेबुदिठानिनुय महत्थम् ॥ जो उवढं जा बहुसो सोही बंधमोक्नत्यम् ।। सयगं सम्मन्नं ।। १३९ ।। ( 27 )
SR No.007578
Book TitleOperation In Search of Sanskrit Manuscripts in Mumbai Circle 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP Piterson
PublisherRoyal Asiatic Society
Publication Year1883
Total Pages275
LanguageEnglish
ClassificationBook_English & Catalogue
File Size115 MB
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