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________________ [४३] आत्यन्तिक नाश हान है, और विवेक-ख्याति हानका उपाय है। उक्त वर्गीकरणकी अपेक्षा दूसरी रीतिसे भी योगशास्त्रका विषय-विभाग किया जा सकता है। जिससे कि उसके मन्तव्योंका ज्ञान विशेष स्पष्ट हो । यह विभाग इस प्रकार है-१ हाता. २ ईश्वर ३ जगत् ४ संसार-मोक्षका स्वरूप, और उसके कारण । १ हाता दुःखसे छुटकारा पानेवाले द्रष्टा अर्थात् चेतनका नाम है । योग-शास्त्रमें सांख्य वैशेषिक, नैयायिक, बौद्ध, जैनें और पूर्णप्रज्ञ (मध्य) दर्शनके समान द्वैतवाद १ "तदभावात् संयोगाभावो हानं तद् शेः कैवल्यम्" २-२६ यो. सू । २ "विवेकख्यातिरविलवा हानोपायः" २-२६. यो. सू । ३ "पुरुषबहुत्वं सिद्ध" ईश्वरकृष्णकारिका१८।४" व्यवस्थातो नाना"-३-२-२०-वैशेषिकदर्शन । ५ "पुद्गलजीवास्त्वनेकद्रव्याणि"-५-५, तत्त्वार्थसूत्र-भाष्य । ६ जीवेश्वरभिदा चैव जडेश्वरभिदा तथा । जीवभेदो मिथश्चैव जडजीवभिदा तथा । मिथश्च जडभेदो यः प्रपञ्चो भेदपञ्चकः। सोऽयं सत्योऽप्यनादिश्च सादिश्चेन्नाशमाप्नुयात् ॥ . सर्वदर्शनसंग्रह पूर्णप्रज्ञदर्शन ॥
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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