SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [४] क्रिया अर्थात् आत्मोन्मुख चेप्टा इतना ही समजना चाहीये। योगविषयक वैदिक, जैन और बौद्ध ग्रन्थोंमें योग, ध्यान, समाधि ये शब्द बहुधा समानार्थक देखे जाते हैं। दर्शन शब्दका अर्थ-नेत्रजन्यज्ञान, निर्विकल्प (निराकार) बोध, श्रद्धा, मत आदि अनेक अर्थ दर्शन शब्दके देखे जाते हैं। पर प्रस्तुत विषयमें दर्शन शब्दका अर्थ मत यह एक ही विवक्षित है। योगके आविष्कारका श्रेय--जितने देश और जितनी जातियों के आध्यात्मिक महान् पुरुषोंकी जीवनकथा तथा उनका साहित्य उपलब्ध है उसको देखनेवाला कोई भी यह नहीं कह सकता है कि आध्यात्मिक विकास अमुक देश और अमुक जातिकी ही बपौती है, क्यों कि सभी देश और सभी जातियोंमें न्यूनाधिक रूपसे आध्यात्मिक विकासवाले महात्माओंके पाये जानेके प्रमाण मिलते हैं । योगका १ लोर्ड एवेवरीने जो शिक्षाकी पूर्ण व्याख्या की है वह इसी प्रकारको है:-" Education is the harmonious development of all our faculties. " २ दृशं प्रेक्षणे-गण १ हेमचन्द्र धातुपाठ. ३.तत्त्वार्थ अध्याय २ सूत्र :-श्लोक वार्तिक. ५ षड्दर्शन समुच्चय-श्लोक २-"दर्शनानि षडेवात्र" इत्यादि. ६ उदाहरणार्थ जरथोस्त, इसु, महम्मद आदि.
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy