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________________ [१४२] योगसूत्रवृत्ति और योगविंशिकाटीकामें आये हुए अबतरणोंका कर्ता और ग्रंथके नाम निर्देश संबंधी परिशिष्ट. २ (आर्ष) (आचारांगसूत्र पत्र ६) शीतोष्णीयाध्ययन (आचारांगगत) पत्र ३७.। स्थानान पत्र १९। (भगवतगीता पत्र २५) गच्छाचार पत्र ८०। महावादी (सिद्धसेन दिवाकर)-(द्वात्रिंशिका पत्र २९।) स्तुतिकारः-पत्र ३७ (कुन्दकुन्द ) (प्रवचनसार)पत्र ८७ 'जोजाणइअरिहंते' प्र-१ गा-८४॥ भाष्यकृत् (जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण)-(विशेषावश्यक पत्र ४) महाभाष्यकार (जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण)-(विशेषावश्यक पत्र ८६।) १ ऐसे कोष्ठकसे हमारा मतलब यह है कि-उस उस स्थानमें ग्रंथकारने आचार्य या ग्रंथका उल्लेख नहीं किया किन्तु हमने अपनी ओरसे खोज करके सूचन किया है। २ इस स्तुतिकार शब्दसे ग्रंथकारको सिद्धसेन अभिप्रेत है या समन्तभद्, इसका पता हमें अभी नहीं लगा। - - -- - -
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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