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________________ [ १०२ ] ही है । इस प्रकार सभी क्लेश जैन संकेत के अनुसार मोहनीयकर्मके औदायिक भावरूप ही हैं । इसीसे योगदर्शन में क्लेशतयसे कैवल्यप्राप्ति और जैनदर्शन में मोहदयसे कैवन्य प्राप्ति कही गई है । सूत्र १० - सूक्ष्म - अर्थात् दग्धवज सदृश - क्लेशोंका नाश चित्तके नाशके साथ ही सूत्रकारने माना है । इस बातको जैनप्रक्रिया के अनुसार यों कह सकते हैं कि जो क्लेश श्रर्थात् मोहप्रधान घातिकर्म दग्धबीजसदृश हुए हों, उनका नाश बारहवें गुणस्थानसंबंधी यथाख्यात चारित्रसे होता है । । सूत्र १३ -- प्रस्तुत सूत्रके भाष्यमें कर्म, उसके विपाक और विपाकसंबंधी नियम आदिके विषयमें मुख्य सात बातें ऐसी हैं जिनके विषय में मतभेद दिखा कर उपाध्यायजीने जैनप्रक्रिया के अनुसार अपना मन्तव्य बतलाया है । वे सात बातें ये हैं-१ विपाक तीन ही प्रकारका हैं । २ कर्मप्रचय के बंध और फलका क्रम एक सा होता है, अर्थात् पूर्वबद्ध कर्मका फल पहले ही मिलता है और पश्चात्बद्ध कर्मका . फल पश्चात् । ३ वांसनाकी अनादिकालीनता और कर्माशयकी एकभविकता अर्थात् वासना और कर्माशयकी मिभता । ४ कर्माशयकी एकभविकता और प्रारब्धता । ५ कर्माशयका उद्बोधक मरण ही है, अर्थात् जन्मभर किये १ पा० ४ सू० ३-३४ । २ तत्त्वार्थ अध्याय १० सूत्र ५१.
SR No.007442
Book TitleYogdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlal Sanghavi
Publication Year
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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