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________________ पत्राक पत्राक विपय और प्रनादि विषय और प्रश्नादि ७ परिणामें परिणम ५३१ । छ लेश्या कही , मनुष्य को कितनी लेश्या इकृतलेश्या अनन्तप्रादेशिकी एष यावत् शुक्रले त्यादि निर्णयाधिकार ५१२ । प्या , कृजलेश्या असख्येयप्रदेशायगाठ एय (लेश्या पद १७ वा पूर्ण) यावत् शुकलेश्या , कृपालेश्या की फितनी अ वगाहना एष उक्तलेश्याषगाहना , स्थान प्रस ॥ १८ वा पद कहते हैं । ख्यात ५३५ हेश्यास्यानों का, अल्पयत्व द्रष्यार्थ प्रदेशार्थ जीवगइदिय फाए यह सग्रह गाथा २. ૧૪ द्रष्यार्थप्रदेशार्थ से ५३६ । जीय जीवपर्ने काठसे कयतक रहे, सर्वकाउ ५४५ (चौघा उद्देशा पूर्ण हुमा) | नारफी नारकीपर्ने काल से फितने फालू रहे.. छ लेश्या काही , छनटेश्या नीललेश्या को पाकेएवं तिर्यंच क्षेत्र से फ्राले से कहोतियणी जसे चौथे चो में फहा घेरूर्य मणि दृष्टान्त मनध्य मनप्रणा व देवाइनका प्रश्नोतर ५१६ प्रयन्त करना शसदि पव्यता जारकी अपर्याप्त नारको पणे कालसे कब तक एव याबद्देवी पर्यन्स ५१८ - बाउहश ३. या
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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