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________________ पत्राक विषय और प्रश्नादि विपय और प्रश्नादि पत्राक याहत के जो परम निर्जरा पुल सो सूक्ष्म है। इत्यादि १३४ इत्यादि निर्णय ५३१ | आदर्श (सीसे) को देखता मनुष्य क्या आदर्श बवास्थ मनुष्य उन निर्जरा पुगलों को अन्याय को देख के अपने को देख्ने प्रतिनाग (बाया) नानात्य को जाणे देखे नही, देयता जी कोछ| को देखे इत्यादि निर्णय उम निर्जरा पुठों के अन्यत्व नानात्व को न एष शसि मणी शादि का नीशालावा कहा | १३६ देखे म जाणे ४३२ | खूब गाढा पेठा था कम्बल जितने थाफाश सहन निर्जरा पुदल सर्वलोक को अवगाह के को रोक के रहे फैलाया ऊनी उतने ही था नारका उन पुलों को न जाणे न देखे काश को रोक १३६ व पत्राद्वय तिर्यंच पर्यन्त कहना, मनुष्य उन एवं स्थूणा सून मी कहा, थाकाशपिग्गल काहे निर्जरा पटलाको कोई जाणे देखें कोई नखा से व्याप्त है कितने काय से उपाय पिधी 4 न देख इस्पादि वापिकार ६६६ | काय योपतत्रिसकाय काल से स्पष्ट है ? धर्मा २) वानभ्यन्तरजीतिमी जर मारेको कोक राधमा स्त काय से स्पष्ट है पर इसके देश और प्रदे धतिक सामनेपाको काही वमोनि: दो ने श से नही एवं बधर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है पर चकार। माया HONE.A. कायायायउसका स्पर सन्तजा मास्त कायम
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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