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________________ 色 तं० सुकमाश्वाणागिज्या वस्कुप्फासनइति ॥ २४ ॥ जेयावणे तहष्पगारा ते समासनं दुखिहा परणता, पाप्तगा य उपयप्तगाय, तत्यण जे त पागा तेण सपता, तत्यण जेत पातगा तसिण यन्ना देमण गधाद सेण रसाद सेण फासादमण सहस्वग्गसो विहाणाइ सखेड्याइ जोगिप्यमुहसय सहस्साइ पत तगणिस्साए पन्नगा वक्कमति, जत्य एगी तस्य सिय सखिया सिय सविता सियणता एएसिण हमार्नु गाहानुं शृणुगतष्ठान तजहा-कदायक्दमूलाय रुरकमलाइयानरे । गुच्छाय गुम्मबल्लीय बेलुयाणितणा णिय ॥ १ ॥ पउमुप्पलसिघान हढयसवाल किराहरपणए । श्रवण्यकच्छनाणी कदुक्कुणबीसमे ॥ २ ॥ तल्लिनालय पप्तपुष्पफलेस्य । मूलग्गमज्कषी एसु जोगीम्स्सइकेत्रिया ॥ ३ ॥ सप्त साहारणसरीर घादरयणस्सटकाइया । सन्तयादरयणस्सइकाइया | सत्त एगिदिया ॥ से क्ति बेइडिया ? बेइदिया ग विह्ना पणप्ता, तजह्ा–पुलाकि मिया कुच्छि किमिया गनृयलगा गालामा णउरा सोमगलगा बसीमुहा सू पपिषाम्ये तथाप्रकारास्त समास्ताद्विविधा प्रचतास्तद्यथा पर्यातकापर्यातकाच तत्र पत्रपर्याप्तास्ते सम्प्राप्ता तत्र ये पर्याप्तका स्तेपा दामन्यादरमादेशन स्पशादेशेन सहस्त्राग्रथो विधानाम (मेग ) सख्ययामि यानिप्रमुखशतसहस्त्राबि पर्याप्तमिश्रा अपर्याप्तवा कमरते कस्तत्र स्यात्सस्येमा स्पादसरूपमा स्पादनमा । यतेपानिमा गाथा अनगन्तव्या तयचा- कन्दन्दमूलामि वृक्षमूलानिचाप रागावलाच वेकानिवानिच ॥ १ ॥ पटनात्पलशृङ्गाटका सवालकामना। अवनफाकवनायि कम्दुकका नविशतिक | ॥ २ ॥ स्वकपिवालपु पत्रपुष्पफलपुच । मूलाग्र मध्यवीजपु यानि कस्यापितापिच ॥ ३ ॥ एका साधारणधरोरयादर वनस्पतिकायिका यादवनस्पतिकायिका । समाप्तानि एकेन्द्रियाणि । अथ के ते इन्द्रिया हो प्रिया अनेकविषाः प्रचतास्तद्यथा पूर्ति कपिला कुक्षिपि
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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