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________________ 8 ••• try उदाए उयाए होयाए तिरियबाए विदिसीमाए घाउकामेवा उकलिया षायमनलिया उ कलियाघाए महलियाषाए गुजाबाए ऊकाषाएं सट्टयाए घणवाए तनुत्राए सुबाए, जेयाषन्ते तटुप्पमा रा ते समास दुबिहा पखप्ता, तजड़ा पज्जत्तगाय छपज्जतगाय, तत्यण जेते पज्यप्तगा तेण श्वसप ता, तत्यण जेत पज्यप्तगा एएसिण वपादसंण गधादेसण रसादंसेण फासादेसेण सहस्सग्गसोबिहागाइ सखिया जाणिप्पमुहुस यसहस्सा पज्जप्तगणिस्साए पत्तगा वक्कमति, अत्य एगो तत्य नियमा स ॥ सेत्त यादवा उकाइया ॥ सेप्त घाउकाइया ॥ से कित वपस्सनुकानुया वणरुसहकाइया दुबिहा प०, तअहा सुकमवणस्सङकाङयाय बादरवणस्सकायाय, सेकित सुमषणस्स इकाइयार दुबिहा पक्षता, त० पयन्स सुमत्रणस्सइकाइयाय पज्यष्ठमुहुमषणस्सइकाइयाय । सेत्त सुकमवणस्सष्ट्रकाइया । सं कित वायु धोवायुः विवायु विहिब्वायु वातोमासे, बालिकार बातमवछली उत्बलिकावाटो, मरठलिबादावो । गुन्जावा महायातो दष्विासो पनबाततनुवात वावः मे धान्ये तथा प्रकारा सर्वे द्विविधाः माता-प्रयकापोवा व । तत्र द्यः पृष्ठे अपर्याप्तवास्ते अस प्राप्ताः । तत्र प पते पर्यासका बदन एसा विसरायचो विधान निसिंक्या शानि ।। चौरप्रमुखानि इतसहस्त्राणि पर्यातानि या अपत्यानि कृषि नियमो पर्यस्वपोनि तैरत वाररवायुकाधिर्वाः । भक्तिधामुकाविहार अप अतिविषा प्रतिवा दूरपतिकायाः दिवि । माद्या सूक्ष्मवनस्पतिकापिका बादरवन स्पतिवायिकार,६,चयं,बेतिविष भूमिवनस्पतिकारियों बनवपतिकाबिया द्विविधाः प्रचता । द्यथा पर्याप्तथून वनस्पतिकामिकाः पर्याप्त रविकामिका तर सूक्ष्मवनस्पतिका विचार पद पतिविषा बादरवणस्पतिवाचिका ? बाद ममयपलिका विद्या द्विविधा T
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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