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________________ रायपसेगी। देवतेणेव उवागच्छदरता सूरियाभेदेव करवलपरिगेडिय जावपवि. गति तएणसे सूरियामे देवे आभिउगस्स देवस्स अतिय एवमट्ठ मोच्चाणिसम्म हट्टतुट्ठा जावहियए दिव जिणदाभिगमण जोग उत्तरवेउब्बिय रूव विउब्वइ चउहि अग्गमहिसीहि सपरिवारा णा हि दोहि अणिएहि तजहा गंधवाणीवएणय नहाणीएणय सद्ध स परिखुडे तदिव्व जाण विमाण अणुपयाहिणी करमाण पुरथिमिल्लेण तिसोमाण पडिरूवएण दुरुहद दुरुहद टुरुहित्या जेणेवसीहासण तेणे व उवागच्छद सीहासणवरगए पुरित्याभिमुहे सगिणसगण तएण तस्स स रिवाभस्स देवस्स चत्तारि सामाणिय "करयल परिग्गहिय दसनह सिरसावत्त मत्थए धजलि कड नएण विजएण बडा दवडा वेत्ताए यमाणत्तिय 'मिति द्रष्टव्यम, (तएण से मूरियाम देवे) इत्यादि दिव्य प्रधान जितेन्द्रस्य भगवतो व मानस्वामिनोऽभिगम मायाभिमुख गमनाय योग्यमुचित जितेन्द्राभिगमनयोग्यमुत्तर - क्रिय रूप विकुन ति विकुवि वाचतिमृभिरगमहिपीभिः सपरिवाराभिदाभ्यामनीकाभ्या तद्यथा, गन्धवानीकेन नाटगानीकेन च साई तव सहभाव स्वस्वामिभावमन्तरेणापि दृष्टी यथा समानगुण विभवयो ई यो मिवयो रत' स्वम्वामिभावप्रकटनार्थमाह। (सम्परिख डे) सम्बक आराधकभाव विभाण परिवत', तत दिव्य यानविमानमनुप्रदक्षिणी कुर्वन् पूर्व तोरणानुकूल्येन प्रदक्षिणी कुर्वन् पूर्व ण तोरण न अनुप्रविशति प्रविशन् पूर्व ण विसोपानप्रतिरूपकेण प्रतिविशिष्टरूपेण विसीपानेन तत्' यानविमान(न्दुरुहद) इति भारीहति आरुह्यच (जेणे )विति यस्मिन्नेव देश तस्या मग्निपीठिकाया उपरिसिहासन' ततीपागच्छति, उपागत्वच मिहासनवरगत' सन पूवाभिमुख सन्निपन्न' सम्यक् सकलसेवकजनवमत्कारकारिण्या उप शनस्थित्योपविष्ट'। (तएण)मित्यादि, वावीन जिहा सूर्याभ देवछद्र तिहा जाइजाइन मूयाभ देवप्रति विहु हाधिकरीमस्तकप्रद क्षमावतकरीयावत्सब्दडमस्तकइयजलीउडाविमानसबधीआजाउपराठीपद तिद्वारपी सूयाभ टेव सेवक देवनद समीपदएहअर्थप्रतिसाभलीनद् हिववअवधारीन हपसतोपपासु चित्तन आयदप तिद्वारपछीतहमूयाभपोतदप्रधानजिनेदबह मानसामिपासिजावायोग्य भवधारणी यरूपयकीअनस्वैक्रिय रूमप्रतिनीपजावैनीपजावीनद च्यार अगमहिपी पिरिवारमाथि अनदू बिहु कसाधि तैकहइछ गधर्वकटकद १ नाटिककटकटू साथिद परिवग्थु तेप्रधानदेवसवधीयान विमानप्रति जिमण्डपासथकीप्रदक्षणा करतुधकु पूर्वन भलदपाउद्वायारपद चटर चटीनद
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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