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________________ रायपसेगी। व्वद अणेग खभ सय सन्निविट्ठ अग्गयमुकयवयरवेडया तोरण वररत्तिय सालिभजियाग सुसिलिह विसह लट्ठसविध पसत्य वेनिय विमलख भ णाणामणि कणगरयण खचिय उज्झन वहुसममुविभत्त देसभाग इहामिग उसम तुरव णर मगर विहग वालग किन्नर करू सरभ चमर कुजर वणलय पउमलय भत्तिचित्तक वगामणि रवण महत प्रेक्षागृहमण्डप विकुर्वति कथ भूतमित्याह। अनेकस्तम्भ तन्निविष्ट तथा अभ्युद्धता अभ्युत्कटा सुकृता सुष्टुनिष्पादिता वरवेदिकानि तोरणानि वररचिता शालिग्निकाच यत तत् अभ्युनतसुकृतवरवैदिकातीरणवररचितशालिज्जिकाक। तथा सपिलाटा विशिप्टालष्टसस्थिता मनीजसस्थाना', प्रशस्ता प्रशस्त वास्तु लक्षणोपेता विमलातमा वेड्यरनमा विमला स्तम्भा यब तत् सुशिलाटविगिएटलप्टसस्थितप्रशस्तवैदूर्यविमताताभ यथा नानामणय खचिता यन भूमिभाग स नानाणिखचित । सखादिदर्शनात काय पाक्षिक परनिपात । नानामणिसचित उज्वनी बहुसमी अत्यन्त सम सुविभक्ता भूमिभाग यत तत् नानामणिखचितीज्वाल वहुसमसुविभक्तभूमिभागम् । तथा इहा मृगा वृका पभा वृपमा म्तुरगनरमकरविहगा प्रतीता व्याला स्वापदभुजगा' किन्नरा व्यन्तरविशेषा करतीमगा, सरभा पाटव्या महाकाया पमत चमरा भाटव्यागाव' कुञ्जरा दन्तिन' वनलता यगोकादिलता पद्मलता पद्मिन्य' एतासा भत्ता विलित्या चिवमालखी यत तत्, दहा मृगपम तुरगनरमकरविहगव्यालकिन्नरकरुसरभचमरकुज्जरवनलतापद्मलताभक्तिचित । तथा स्तम्भी गतया स्तम्भीपरिवर्तिन्या वज्ररत्नमय्या वेदिकया परिगत सत् वदभिराम तत् स्तम्भोगतवजवैदिकापरिगताभिराम। “वज्जाह रजमलयुगलजन्तनुत्त पिव थ तसइस्स मालिणीय" मिति विद्याधरन्तीति विद्याधरा विशिष्टविद्याशक्किमन्त' तेपा नमलि युगलानि समानशीनानि वदानि तेषा यन्वाणि प्रपञ्चबिशेपास्तेषुतामिव अर्चिपा मणिरत्नप्रभाज्वालाना सहसं मालनीय परिवारघमना सतनाविप गहिउछ अतिरमग्रीकपणीयकाजीयबहारनईस मुखथवरही भल इकारीमरह नापजावीवरलमयाद्वारमू डिलपलीवेदिकावरडोछदू तोरणनविषप्रधान रचीतछड पूतलीनेह विमानविपद जाणीइभूमिकामाहिधीजग्यारमभूमिसाथरूडोपरिपालगीरहिया भलामनीज सस्थान हनु वास्तलक्षणइसहित वैडूयरत्नसय निमलथाभाछह तामडपि अनेकप्रका ग्नीमणिचद्रकातादिक सुवण रत्नककतनादि तणकरीरचित उजन्नु घणममुससुविहत्य भुभिनुप्रदेसकप्रेक्षामडपनविपद बरगडा वृपभ धोडा मनुप मगर मत्स पक्षी सप देवता नग अष्टापद चमरीगाई हस्ती बनलताअभीकलतादिक पानता कमलनी एहोनाभीतिकरी
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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