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________________ रायपणी। निरन्तरसु निच्चल सम्बउसमन्ता समज्मोज्मा एवामेव सिविसूरि याभस्स देवस्स ग्राभिउगियादेवा सवट्टएवा विउत्वतिसवट्टवाए विउ वित्ता समणस्स भगवउ महावीरस्स सब्वउसमन्ता समभोज्मा समणस्स भगवउ महावीरस्त सव्वउसम्मन्ता जोयण परिमंडल जकिचितणवा तहेव सव्व आहुणिय २ एगवा पडेंति एगते पडित्ता खिप्पामेवउवसमन्तिखित्ता दोच्चपिवेउव्विव समुग्धाएण समोडणाति दोत्ता अभवलदए विउच्वइ सेजहानामए भयगदारए सियातरुणो जावसिप्पोवगए एग महदगवारगवा दगथालवा दगकलसगवा दग कूभगवागहावं आरामवा जीवपच्चवा अतुरियनाव सव्वउ सम्मता (एवं मेवे)त्यादि सुगम, यावत् (खिम्यामिव पच्चुवसमन्ती)त्यादि एकान्ते तृणकाप्टाद्यपनीय क्षिप्रमेव शीधुमेव प्रत्युपशाम्यन्ति सवर्तक वातविकुर्वणानिवर्तन्ते सवर्तक वातमुपसहरतीति भाव । तती (दोच्चम्पिवेउविय समुग्धारण समोहणन्ति) इति सवर्तक वातविकुणार्थ हि यत् वेलायमपि वेनियसमुदातेन समवहनन्तत्किलैक , इदत्व वादलकविकुर्वणाथ द्वितीयमतउल हितीयमपि वार वैक्रिय समुदातेन समवहन्यन्त समवहत्यचाभवर्दलकानि विकुति वा। पानीय तस्य दलानि वार्दलान्यैव वार्दलकानि मेघा इत्यर्थः। आपीविभुतीति अभाणि मेघा, अभाषि सन्यस्मिन्निति अभूमादिभ्यतिमत्वधीं योऽप्रत्यय , आकाशमित्यर्थ', अ बर्दलकोनि तानि विकुवन्ति आकाशे मेधान् विकुर्वन्तीत्यर्थ' । (सेजहानामएभइगदारगसिया) इत्यादि पूर्ववत्, यावत् "निउपसिप्पोवगएएगमह मित्यादि । स यथा नामकोभृतिकदारक एक महान्तन्दकवारक वा मृत्तिकामयभाननविशेपम। (दगुकुम्भय वा) इति दकघट दकस्थालक वा कसादिमयमुदक अतरायरहित निश्चलपण सघलीदिसदविदिसः पुजदएहवी दृष्टात तेहयणि सूर्याभ देवता मेवक देवता सवत्तवायुमति विकु सवर्तबाध विकुवान सर्मण भगवत महाबीरन मधला चउपपेर पूजद थमण भगवते महावीरन सघल चउपपेर योजन प्रमाणमांडललगइ जिकाइ वष तिमज सर्व समूचिपदार्थसवत्तवाद एकठउ करिकरी २ एकावद नाप नापीनष्ट्र तत्कालिन निवर्तः ताकालिजनिवत्तीनदु बीजीव ला वैक्रिय समुघातकरी समुघातकर बीजीवेला वैक्रियसमुधात कपाणीनउ वादलोरी विकुर्व तेजिम कोइएक भवसायतनउबेटउहुए युवान यावत्सब्दयुगवइत्यादिकसर्व पाठ कहिवउ विज्ञानिकरीसहितएक मोटउमाणीनउ वारीउ अथवा पाणीभङ्गाऽथालविसेप पाणी उकलसपाणीनउघडउ एतलामाहिलूकाइक गुहीनद आराम
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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