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________________ २७ रावसेयी । na करयसिवा आमलग जीव उवदेसेस्सामि एव खन् पएसी दसट्ठाणाइ छउमत्थेण मगुस्से मव्वभावेण नजाणवू नपास त धम्मत्थिकाय अधम्मत्थिकाय आगासत्थिकाय जीव असरीरवड. परमाणुपीगाल सह गध वाय जय जिणे भविस्मद् श्रय सव्व दुक्खाण अत करिस्सइवानोवार याणि चैव उप्पन्न नाग दस धरे रहा जिणे केवली सव्वभावेण जाणइपासति त धम्मत्थिकाय जावनोवाकरिस्मद् त सहाणि तुम पएसी जहा अन्नोजीवो तचैव तणसे पदेमीराया केसि कुमार समण एव वयासी सेतूगा भते इत्थिय कुघूस्मय समेचैव जीवहता पएसी इत्विम्तय कु घू समय समेचैव जीवे सेतूण भते इत्थार कुघू अप्पकम्मतरा चैव अप्पaरियतराचेव अप्पासवतराचैव एव आरनीहार उसास नी ७ aust रुद्रा तीव्रा श्रतिशायिनी । दुःखादु स्वरुपा दुल्लब्ध्या पित्तवर परिगत शरीरो भ्युकाल्प चापि दोहोत्पत्त्यावापि विहरति तिष्ठन्ति सम्पलियष्क निसन्ने इति पद्मासन सन्निविष्ट | सव्व कोहमित्यादि क्रोधमान मायालाभा प्रतीता । प्रेम अभिष्वष्ण मात्र हेपोऽप्रीतिमाव दिरुपहिततु रुपनधीदेपतउनुकि प्रदेसी ताहराकरतलनद्वद्विषट्र श्रमलाममा जीवप्रति देपा डड एप्रकार निश्चय हेप्रदेसी दसस्थानकदमपदीरथ छद्मस्यमनुष्य सर्वथापचर्महष्टि नर्जा नाविक दीजानवशेपवत्रीध देषइदर्शनइकरीदर्शन तेसामीन्यववीध तेकहछद्र धमास्तिकार्य ? अधमास्तिकाय २ श्रकासास्तिकाय ३ जीवसरीरहित ४ परमाणपुहुल ५ सब्दनापुहुल ६ गधनी पुहुल वायुकाय एहजिनकेवलीयासाव ८ एह एतल भवसमस्तदुखनु अ तकरस्य एतल भवद्र मोक्षथाम १० अथवान होजाइ एह सव्दार्थनिश्चद्र उपनुद्द ज्ञान दर्शनते हनुधरबहार अहत सविपूजनीक जिनकेवली ज्ञाननुधणीरागई परहित सर्व्वसावइद्रव्यपयायरहित जाण वसेपपणद् दॆपइसामान्यपण तेहकर धर्मास्तिकायादिक पुर्वोदशपदार्थ जहालगिस सारनु श्व तकरस्वइ करइनहीकरद्र तेयइकारणइसद्दहमानि तुझे प्रदेमी जेहमरीरथकी जीव अनेर • जीवथीसरीर अनेक जिमनपूवनीपरि रहनुस प्रश्न ८ गुरइइमकच्यापकी तह हेमदेसी राजा केसी कुमार श्रमणप्रति इमबोल्लु तेह साचु हेपूज्य हाथीनउ कथूयानू मरीपु जीव गुरकटुकै हा प्रदेसी हाथीन कु धून सरीपुज जीव राजाकहडछष्ट्र तेहसाचु हेपूज्य हाथी की कुथूल अल्प कम बाऊपादिककभघीडानुषयी घोडीक्रियाकावादिकव्यापारघाठक प्राणातिपातादि श्रवपपथि
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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