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________________ रायप सेषी। णिग्गद्य पवयणे अट्ठे अय परमट्ठ े सेसे यणो चाउदसमुदिट्ठ पुि मासणीमुपडिपुराणयोसह सम्म अणुपाले मागे ऊसिफलिहे अव गयदुवारे चियत्तट उरपरघटपवेसे समणे गिग्गघे फासुए सणिज्भेण अस्थीनि प्रसिद्धानि तानि च मिञ्जा च तन्मध्यवर्त्तीमध्या अस्थिमध्यान ते मेमानुरागेय सार्व प्रवचनप्रीतिलचणकुसुम्भादिरागंण रक्ता इव रक्ता यस्य स तथा केनोलेखेनेत्यत याह (प्रायमा जोगिन्थे पय परमई से से यह ) इति "आयु" इति श्रायुष्मन् एतत्व सामथ्यात् पुरादेरामन्वय शेषमिति धनधान्यपुवदाराराज्यकुलप्रवचनादि (ऊसियफलिऐ ) इति उच्कृित स्फटिकमिव स्फटिकमन्त' करण यस्य स तथा मौनीन्द्रमवचनावाच्या परितुष्टमना इत्यथ । एमा वृद्धव्याख्या परेवा । उच्छ्रित अगंल स्थानाटपानीय उर्डीकृती न तिरश्चीन कपाट पञ्चाद्भागादपनीत इत्यथ' । उच्छ्रितो वा अपगतपरिधोऽङ्गुला गृहद्वारे यस्या सामुत्तपरिध परिघ वा श्रीदायातिरेकतोऽतिशयदानदायित्वेन भिक्षुकप्रवेशाथमनर्गलितगृहदार इत्यथ । (अत्रय डारे) अमावृतहार । भिक्षुक प्रवेशार्थं कपाटानामपि पश्चात्करणात वृडाना तु भावनावाक्यमेवम् । सम्यग्दर्शनलाभे सति न कस्माच्चित् पापण्डिकाद्विभेति शोभनमा परि हो उत्घाटित शिरा स्तिष्ठतीति भाव | (चियत्तन्ते उरघरपवे से) चियतीतिना प्रीतिकरा । अन्त परगृहे प्रवेश शिष्टजनप्रवेशन यस्य स तथा अनेनानीप्यालुत्वमस्योक्त अथवा चियत प्रीतिकगे लोकानामन्त पुरे गृहे प्रवेशो यस्यातिधार्मिकतया सववाशब्कनीयत्वात्स तथा (चाउदसमुद्दि पुर्णिमासियो सुपडिपुरणपोसह श्रणुपाले माणे) इति चतुदश्यामष्टस्यामुद्दिष्टमित्यवमाध्या भगवत अहोभाउपावतीयतीतुते दचिवसारथी नायेनिग थ प्रवचनमूर्वाजनमत तैहाज अर्थधन एडजिनमततेजपरमप्रकष्ट अर्थ परमनिधान शेपयाकतुपुर कललधनधान कुपवचनादिकते निरर्थकससवअसारछद्रमकरीमान छडएतलब दमानुगुणक हद्दवडचारिवनुगुणकडक वर्तुद सातपाथी श्रष्टमापत्रतथिकउदिष्टर्तकलाप्यकतिथि तृनिकारिउदिष्टाश्रमावास्यापणिकही दू पूर्णिमावविचमा सामबधनाएगीतथकर प्रतिपूर्णच होराविधमेनुमीयसम्यप्रकार पाहा रादिकच्यारट्रपच्चखातिपालतउथक ठरतलदूषग्यारमठ श्रीषधप्रतक हवै सामान्यप्रकारइदानक eos जेहनतकरणस्फटिकानीपरि निर्मल केश्वथवाभोजन वे लाइक पाउथकी आगलि जेइपरहा कीधाकटुकमाडउघाडावतेजडद्रथकइ भिक्षूकन उपवेशनहूड काडीछद्रराजाअते पुरश्रनली कना घरनविषद्रप्रसज्ञेा इसकाठाममाठद्र श्रमण हवइवारमुतंघम विभाग वृतनिगु धजमीनद्र प्रामु कतिजीववृतकडकडपपीयते ४२ दीपरहित श्रनादिक पाणी एकवीसप्रकार खादिमटीपरापी रकी सुखवासवाजाठ पाटrs श्राश्रय सखारकतृग्यादिकतेमइकरी वस्त्र पात्र कावलु नान्हउ काली श्रतएकजाति पते कजातीयचूकी तंगडकरीप्रतिलाभनुथकु घणद्र सीलतेसु २२५
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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