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________________ ★ रायपसेगी । पिस्सीले णिव्वते गिगुणे जिम्मेगो णिपव्वक्खाण पोसोनवामे बहुदुपय चउप्पय भिया पसूं पक्खि सरिस्वण घाताते वहाते उच्छेषणाएं अधम्म के समुट्टिए गुरुण गोयम्भूद्वेत्ति गोवियाया पउन सयस्यविया' जणवयस्स गोकम्म करवा भरवा विति पव्व त्तेद्र तस्सण पदेनिस्सरणो सूरिय कृता गामादेवी होत्या सुकमान प्राणिपाया धारिणी वग्रगड पएसिया रणासहिं अगुरत्ता इट्ठे. जाव "सहे विहरति तस्य पदे मिस्सरणो जेई पुत सुरिय कताएं देवीते ३०८ $ 5 5 एतत्प्रयोगवहुल' | शेष तथैव निशीलोब्रह्मचर्यपरिणामाभावात् निर्ब्रतो विसादिविरत्य भावात् निर्गुण चान्त्यादिगुणा भावात् निर्मायाद परस्त्रीपरिहारादिमयादाविलोपित्त्रात् निमत्याख्यानपौषधीवास' प्रत्याख्याना परिणामपवृदिवसोपवासपरिणामा भावात् बहूनि दिपदचतुष्पद मृग पशुपक्षिसरीसृपानाब्धाताय विनाशाय व्यवधाय वाडनायु उच्छादनां निर्मूलाभावीकरणाया धर्मरूपः केतुरिब गुईविशेषश्व समुत्थित । नं च गुरुणा पित्रादीनामागच्छतामभ्यतिष्ठति श्राभिमुख मूर्ख तिष्ठति नच वित्तय प्रायुक्तेनापि श्रमणवाह्मयभिचुकायामभ्युत्तिष्ठति न च विनय प्रयुक्त नापि स्वकस्यापि आत्मीयस्यापि जनपदस्यापिन सस्यक्कर भरवृत्ति प्रवर्त्तति (तस्मयप एसिस्समूरीकन्ता श्याम देवी होत्या । सुकुमाल पाणिपाया) इत्यादि देवोवर्णन माग्वत् प्रदेशिना राजा, साईमनुरक्ता अविरक्ता कथञ्चिद्दिमियकरणेपि विरागाभावात कुमारदर्शन ( सुकुमाल पाणिपाए नावसुन्दरे) इति अव यावत्करणात् । “अहीण पन्चिन्दियसरीरे लक्खणवळणगुखोव वे एमोगुम्मायमाय पडिपुराण • लेव परनई विप्रतारखड परनदूवचवड मायाकरीगोपविवत्र मृगपासतेकूडकपटतेंदे सभापीपाल . टीचा गल्यानतरखउवसप्रयोग व्यापारचन्द्र पापड़तेहनइइइ बहूजु घणुउजेहनदू व्यापार सुभवारहितकद्र वृतरहित्तचमादिगुणरहित लोकमर्यादाधर्ममयादारहित नुकारसामावपन्चाय "अनपोपधतेगु ऊपवासकरोरहित धणी मनुष्यादिक अजादिक मृगादि तिर्यच * खचर उदिर तुलादिक एलान हणवुतामिमारतु बघतैलाकडीवोडब्रड फलेदवड तिमूल करिव एतलानदू अर्थइपापरूपधूपकेतुगृहइसरपच ऊठ पोतानागुरनइ पनि श्राव्यइथक्डनऊठ न विनयप्रति मजूयङ्क पोतानापणि देसननथी मूधडकर दडडू लेवू भरतेलेवू अथवावृतिवा जीविकाप्रति वर्त्तावन तेहवद्र प्रदेसानइरीजानइ सूर्याभ कता नाम पह राजा हूती मुक मानरु॒द्र हाथमगर्जङ्गनाजिमकचाइव धारिणीन वर्णकति मनापणिक व प्रदेशी राजा सोहि अनुरक्तराठीछद्र मनोहरसब्दादिक पाचवू द्रीनीविषय सुखभोगवतिथका 'विचरइद्र तेह नट्र प्रदेशीनई राज्ञानद्र वहु पुत्र सूरिय कवान देवानु आजन्मकुचिनउऊपन सूर्यकांतनाम १ + ६
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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