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________________ रायपणी। उवदसैति अप्येगइया देवा विलविय गाविद उवदति अप्पेगदया देवा दुयविलविय नट्टविह उवविद उवदति अप्पेगडया देवा अचिव णविह' उवदर्सति अप्पेगडयाटेवा प्रारभिव गट्टविह उव दसेति अप्पेगवा देवा अचिय भारभिय पट्टविह उवदति एव प्रारभडभसोल उप्पय णिचय पसत्त सकुचिय पसारिय रयारडय भत सभ णाम टिल्ब गट्टविहि उवदसैति अप्पेगवा देवा चरविह अभिणय अभिणयति तजहा दितिय पाडियतिय सामतोवणि घाइय लोगमन्झवसाणय अप्पेगइयादेवा णुक्कारेति अप्पेगवादेवा पोति अप्पेगइयालासेति अप्पैगइया देवा तडवेति अप्पेगइयादेवा अप्फो डति अप्पेगइया देवावगेति अप्पेगइत्यादेवा तिचइच्छति अप्पैगइ यादेवा अप्फोडेति वर्गति तिवदछिर्दति अप्पेगइयादेवा इयझेसिव - - - यस्मिन् स उत्पातनिपात स्तम् । एव निपातोत्पात सकुचितप्रमारित (रियारिय)मिति गमनागमन भान्तसम्भान्त नाम (धारभडभसोल) दिव्य नाटविधिमुपदर्शयन्ति। पप्यक्रका देवानुक्कान्तिनुशारशब्द कुर्वन्ति, (पीणन्ति) पीनयति पीनमात्मान कुर्वन्ती स्थूला भवन्तीत्यर्थ , लास विलासयन्ति लास्यरूप नृत्य कुर्वन्ति (तडवन्तित्ति)ताड़वायन्ति ताइवरूपं वृत्त कुवन्ति, (अप्फोडन्ति) आप्फोठयन्ति भूम्यादिकामिति गम्यते। (उनील तित्ति) उन्मलयन्ति मोर विधि देपाडद कोईक देवता पारमित नाटकविधि देपाड कीईक देवता प्रचितन प्रारभत नाटकविधि देपाड एमन कोई कारभडतसोल आरभडभ सोलनाटिकटेपाड उ उ उव्युत् पाबउ नियतवउठउ पडव उव्यापवउ सकौचिवउ प्रसारिबट जाडवू पाडवू भातपण समात पण नाम प्रधान नाटक विधि देपाड कोक देवता चिह्न प्रकार पाभापाई बोलीदेपाड तेकहछद दाप्टान्तिकर प्रात्पतिकर मामतीपति पातिक३ लोकमध्यावसान एहवि पदनी व्याख्यानाटकग बधीजाग्य कोदक देवतामाहीमाहि चकारागाल्यानदकहिझडीए कोडदेवा तोतानइअभिमानिात्मानमाणम्थूलकर कोईक लाम्यनाटकभेदकर कोदक देवता ताडवपणिवाटिकभेदकर कोईकदेवता भूमिकाप्रतियारफोटइहाधिकरीहपर कोकदेवता माहोमादिवलगद कोइक देवता विपदीदअखलार ज्वादिकनतोड कीड़क देवता बायकार्य करइअस्कोरड वनगद विपदी हेडू कोक देवता घोडानीपरिदपारवस दकरद कोद्रक देवा
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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