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________________ रायसेगी। १५८ 1 तंजा मगोगुलियाड नाव गागदतगा तेसुण गागदतरसु बहवे रयया मया सिक्का प्रणत्ता तेसुण रययामएस सिक्कगेसु वहवे वेरुलियामती धूवघडीयातो पण्णत्ताउ तातोा धूवघडीयातो कालागरुपवर जावचिट्ठति सभापण सुहम्माए तो बहूममरमणिज्भ भूमिभागे गणत जाव मणीहि उवसोभियामाणिफासेय उल्तोय तस्वण वद्धूसमरमणिज्झम्स भूमिभागस्स वृडूमज्मदेसभाए एत्यण मडेगा मणिपीढिया पणत्ता सोलस जोया आयामविक्खभेण श्रजोयणाद' वाहल्लेण सव्वमणि मयी जाa ufshaा तीसेा मणिपीढियाए उवरि एत्वणं माणव एखते पण सहिजोयणाइ उठ उच्चत्तरेण जोया उव्वेडेपण जोयणविक्खभेा अडयालीस ग्रहिए अडयालीइसकोडीए अडवाली स तिग्गाहिय सेसनहा महिद भए माणवगस्सा चेद्रयखभस्स तद्यथा पोयाणि पूर्वत पोडशसहस्राणि पश्चिमायामष्टीसहस्राणि दक्षिणतोऽप्टीसहस्राणि उत्तरत स्ताम्बपि फलकवर्णन नागदन्तवर्णन सिक्ककवर्णन धूपघटिकावणन च दारवत् । (सभाए सुहम्माए) इत्यादिना भूमिभागवर्णन (सभाएण सुहम्माए ) इत्यादिना उल्लीकवणन प्राग्वत् (तसा ) मित्यादि तस्य बहुसमरमणीयस्व भूमिभागस्य मध्यदेशभागे अब महती एका मणि पीठिका प्रजप्ता । पोडग योजनान्यायामविष्कम्भाभ्या अष्टीयोजनानि वाहल्यत सर्वरत्नमयी इत्यादि माग्यत्तम्याश्च मणिपीठिकाया उपरिमानेकी माणवकनामा चैत्यस्तम्भ प्रज्ञप्त । पष्टियोजनान्यूईमुच्चैस्त्वेन योजनमुईन योजन विष्कम्भेन अष्टाचत्वारिशदस्रिक | (श्रडयालीस इकोडीए बडयालीस इतिग्ाहिए) इति सम्प्रदाय गम्यम् । “वरामय वहलहसण्ठिए" इत्यादि महेन्द्रध्वजवत् वन निरविशेष तावक्तव्य यावत् "सहस्सपत्तहत्यमा मत्वरययामया जावपडिवा" इति तस्य नागदतनद्रविपद् धणा रुपामय सीका कध्या ते रुपामय सीकानइविपद् घणी वेडूयरत्नमय धूप घडी कही ते धूपघटी कृष्णा गुरु प्रधान कु दरुष्कनुधूप करीमघमघायमानथकीरहद्रद्र समान सुधर्मान माहि पद समुउ रमणीक भूमिनउ भागका पचवर्ण मणिकरी सोभित तेन वर्ण' फरिस पूर्वचल उपरिचद्रयामोतीनीमालासर्वकरिव तेनद्र घपत्र समउरमणीकन भूमिभागनदू घण मध्य देसभागइ इहा मोटीएक मणिपीठिका कही तेहपीटिका सील योजन लांबपर पहूलपात्र पाठवीजन जाडपणा सर्वमणिमयी घठारीमठारी भलु रुप तेह मणिपीठिकान ऊपरि वा मानवकनामाचैत्व स्तनपूनवीकथन काउ तेसाठि योजन ऊ चउ ऊ चपणइ एकयोज्ञन भूमिमाहि ऊ उडएकयोजनपहूलपपड अठतालीसकोडि थिंक
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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