SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५) जे नव क्षेत्रो पवित्र कह्यां बे, तेमां रुतुवंती नारीश्री अजातां रज पी जाय तो ते पापिणी नारीने प्राण जतां बुंरुण, hण के सापिणीनो अवतार लेवो पके बे. स्तुवंती यात्राए चालतां रे, मत बेसजो गाडे ॥ संघतीर्थ फरस्यां थकां रे, पमशो पाताल खाडे ॥ २८ ॥ तुवंती नारीए यात्रार्थे जती वखते गामामां न बेस, अने जो एवं स्थितिमां कोइ संघतीर्थने स्पर्धा तो जाणजो के पातालना खाने परुवुं पडशे श्रर्थात् बहु अशातावेदनीय कर्मो जोगवां परुशे. चोवीश होर एकांतमां रे, चोथे दिन नावुं धोतुं ॥ पुरुष बीजो नव पेखवो रे, मुख दर्पणमां न जोतुं ॥ २ए ॥ चोवीस होर एटले त्रण दिवस रजस्वला बाइए एकांतमां रहे, चोथे दिवसे न्हाइ धोइ पवित्र थ, परपुरुषने जोवो नहीं तेमज दर्पणमां मुख पण न जोवुं. मूत्र ढांटे पावन गायनुं रे, घरमां सहु वामे ॥ लीपे धूपे धोवे दिन चोथे रे, जोजन रांधवा पामे ॥३०॥ " चोथे दिवसे घरमां बधे गोमुत्र बांट, कारण के ते बहु पवित्र लेखाय, अने तेना व अशुद्धिनो नाश थाय बे. ते उपरांत घरमां लींपण करी बधे शुद्धि करवी जोइए. ट कर्या पी ते बाइ रसोमामां जइ रसोड़ करी शके. दर्शन पूजा दिन सातमे रे, जिननक्ति करवी ॥ व्रत पच्चरकाण वखाण सुपो रे, पुण्य पालखी नरवी ३१
SR No.007299
Book TitlePushpvati Vichar Tatha Sutak Vicahr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhimji Bhimsinh Manek
PublisherBhimsinh Manek
Publication Year1916
Total Pages40
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy