SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (6) (३) मानभूम जिलेके पाकवीर, पञ्चग्राम, वोरम, छरा, तेलकूपी और वेळोखा आदि ग्रामोंमें; बाकुड़ा जिलेके बहुलारा ग्राममें और वर्द्धमान जिलेके कटवा ताल्लुके के उज्जयिनी ग्राम के निकट जिन मूर्त्तियों का पाया जाना । ( ४ ) वेलोजा ( कातरासगढ़ ) जैन मन्दिरों के एक शिला लेखमें- “चिचितागार आउर श्रावकी रक्षा वंशीपरा" का लिखा होना जिसका अर्थ यह है कि ये सब चैत्यागार एवं जिनमन्दिर श्रावक वंशजोंके तत्वावधान में रहे । (५) इन लोगोंका कट्टर निरामिष भोजी होना-यहां तक कि अनन्त काय - जमीकन्दादि फलों से परहेज करना । जिसके सम्बन्धमें एक कहावत भी प्रचलित है । 'डोह डुमुर पोड़ा छाती, यह नहीं खाय सराक जाति' अर्थात् सराक लोग इन चीजोंको नहीं खाते ( जैनतर किसी भी जातिमें फल विशेष से परहेज नहीं पाया जाता ) (६) कहीं २ यहां तक पाया जाना कि उनके भोजन करते समय यदि कोई “काटो" शब्द का उच्चारण करले तो वे भोजन तक करना छोड़ देते हैं । ( ७ ) इनका रात्रि भोजनको बुरा मानना । कई एक करते तक नहीं । (८) पुरी जिलेके सराकों की माघ सप्तमी के दिन खण्डगिरि की गुफाओंमें जाकर वहां की मूर्तियों के सन्मुख निम्न भजन का बोलना ।
SR No.007297
Book TitleSarak Jati Aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejmal Bothra
PublisherJain Dharm Pracharak Sabha
Publication Year1940
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy