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________________ तेरापंथ-मत समीक्षा। छनेका ी नहीं है। जिसका जैसा अधिकार होता है, इससे वैसी ही क्रियाएं होती है। एक स्वाभाविक नियमको देखिये. जिसको जिस जगह फोडा होता है, वह उसी जगह पाटा बांधेगा । निरोग शरीर पर पाटा बांधनेकी आवश्यकता नहीं रहती । वैसे मुनियोंकों छकायका कूटा बाकी नहीं है, इस लिये उनको द्रव्यपूजन करनेकी भी जरूरत नहीं। 'धर्मके करनेमें कोई दोष नहीं है, खास धर्मके लिये घर छोडते हो' यह तुम्हारा (तेरापंथियोंका) कथन तुम्हारी अज्ञानताका ही परिचय दे रहा है। __ प्रतिमा पूजनेमें धर्म हम ही नहीं कहते हैं, समस्त तीर्थकर, गणधर, आचार्य, उचाध्याय तथा मुनिप्रवर कहते हैं । जब ऐसा ही है, तब तो तुम्हारे हिसावसे उन सभीको, द्रव्यपूजा करनी कार्यरूप हो जायगी, परन्तु नहीं, वैसा नहीं है । ऊपर कहे मुताबिक जितने पदस्थ अथवा मुनिपद धारक है, उनको द्रव्यपूजाका अधिकार नहीं है । भावपूजा याने जो भक्ति है, वही करनेका अधिकार है । देखिये, प्रश्नव्याकरणकं पृष्ठ ४१५ में इस तरहका पाठ है: “अह केरिसए पुणा आराइए वयमिणं ? जे से उवहिनतपाणादाणसंगहणकुसले अञ्चंतबाल. दुव्वलगिलाणवुडमासखमणे पवत्तायारयउवज्झाए सेहे साहम्मिए तवस्सी कुलगणसंघचेअ य निज्ज. रही वेयावच्च अणि स्सिअं दसविय बहुविहं करे।" उपयुक्त पाठमें ' जिन प्रतिमाकी भक्ति करता हुआ साधु निर्जराको करे' ऐसा कहा है । उस नियमानुसार हम लोग
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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