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________________ रा- समीक्षा 'हियाए' इत्यादि पाठ कहा है । उववाई सूत्रके पृष्ठ १६ में, ठाणांगजीके पृष्ठ १९४ में इत्यादि कई जगहों पर 'हिमाए' इत्यादि पाठ शुभ कार्योंमें आया हुआ है। अत एव प्रतिमा पूजा भवान्तरमें मुखकारी है, यह बात अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है। प्रतिमा पूजन करके सीधा मोक्ष नहीं होता है, ऐसा जो तुम (तेरापंथी) कहते हो, इसीसे ही प्रतिमाकी पूनाका स्वीकार हो जाता है । अब रही सीधे मोक्षकी बात । सो तो ठीक है सीधा मोक्ष नहीं होता है, यह तो हम भी स्वीकार करते हैं। क्योंकि, देखिये, श्रावक पांचवें गुणस्थानकमें होनेसे बारहवें देवलोक पर्यन्त ही जा सकते हैं। और प्रतिमाकी द्रव्यपूजा करनेका अधिकार श्रावकोंका ही है । अत एव सीधा मोक्षका होना कहां रहा ? हम पूछते हैं कि-पांचवें गुणस्थानकवाला श्रावक सामायिक-पषध वगैरह करता है, तो इससे उसका क्या सीधा मोक्ष तुम मानते हो? जब उसका मोक्ष नहीं हो सकता है, तो फिर प्रतिमाकी पूजा करने वालेका क्योंकर हो सकता है ? । इसमें कारण यह है कि-अकेले विनयसे, अकेले विवेकसे, अकेले ज्ञानसे, अकेले दर्शनसे तथा अकेले चारित्र भी सीधा मोक्ष नहीं हो सकता । परन्तु जिस निमित्तको ले करके सम्यक्त्व दृढ हुआ हो, वह मुक्तिका कारण गिना जाता है। फिर भले ही परंपरासे मुक्ति क्यों न हो? । आर्द्रकुमारको प्रतिमाके दर्शनसे समकित हुआ, ऐसा सूयगडांगसूत्रकी नियुक्तिमें स्पष्ट पाठ है । नियुक्तिके माननेका प्रमाण नंदीसूत्र तथा भगवतीसूत्रके पचीसवें शतकमें है, जिसका प... भोंके उपक्रममें ही देदिया है।
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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