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________________ तेरापंथ-मत समीक्षा । (भोजन) जो प्रातःकालसे तीसरे प्रहर वकका हो, अथवा वासी याने पर्युषित पुराणा उडदका भक्त चिरंतन धान्यका भोजन अथवा बहुत दिनोंका सत्यु (साथवा ), गोरस तथा गेंहूका मांड इन्होंमेंसे कोईभी प्राप्त हो, परन्तु भगवान राग द्वेष रहित हो करके ग्रहण करें। ___ अब यहाँ तेरापंथी महानुभाव, अपनी पकडी हुई बातको 'सिद्ध करनेके लिये अनेक प्रकारकी कोशिश करते हैं। परन्तु उन लोगोंको वास्तविक मतलब नहीं प्राप्त होनेसे स्वयं अभक्ष्यी होकर, अन्यको भी अभक्ष्यी करनेके लिये अर्थके अनर्थ करते हैं। 'भात' शब्द जहाँ जहाँ आता है, वहाँ वहाँ भोजन' अर्थ करनेका है। देखिये आज कलभी पुराणाही रिवाज चला आया है जैसे कोई स्त्री क्षेत्रमें भोजन देनेको जाय, और उससे अगर कोई पूछे.कि-कहाँ जाती हो? तो वह यह कहेगी कि-में भात देनेको जाती हूं । यहाँपर चाहे कोई भी चीज लेजाती होगी, परन्तु उसको भात ही कहेगी। उडदका चावल होता है, ऐसा किसी जगह जाननेमें नहीं आया। तब जैसे जवका सत्यु (सथुआ ) होता है, वैसे उडद वगैरहका सत्थु इत्यादि. समझ लेना । मगध देशमें सत्थुका प्रचार बहुत था। अब भी है। अनाना प्रकारके सत्थु मिलते हैं । मैं उस देशमें विचरा हूँ। मुझे इस बातका जाति अनुभव है । बहुत दिनोंके सत्थु - देनेमें वासीका दोष नहीं है आचारांगसूत्रमें अनेक प्रकारके चूर्ण सत्थु. इत्यादिका वर्णन चला है। हमें बडा आश्चर्य तो यह होता है कि-आप लोग टीकाको मानते ही नहीं हैं, तिसपर भी जहाँ तुम्हारे मनलबकी बात आती है, वहाँ तो फोरन टीकाका शरण लेते हो, परन्तु टी
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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