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________________ ५६ तेरापंथ - मत समीक्षा । राजके पास है ) के १९.१ वें पृष्ठमें भी वही पाठ है । इस पाठका मतलब यह है कि - ' जिनवरको धूप दे करके ' । इसमें मूर्तिको जिनवर कहा, इससेही सिद्ध होता है कि - जिनप्रतिमा जिन समान है । इसके सिवाय ज्ञातासूत्र के - १२५५ वें पृष्ठ में 'जेणेव जिणघरे' ऐसा पाठ है । यहाँपर भी जिनप्र तिमाके घरको जिनघर कहा है । इत्यादि बातोंसें जिनसपान कहने में जरा भी आपत्ति नहीं आती है । प्रश्न- १५ आचारंगरे पेला अध्यनरा पेला उद्देशा में केयोके जीवरी इंस्या कियां जनममरणरो मुकावोपरूपे तीणने आहेत अबोधरो कारण केयो तो फेर आप धर्म देवरे वास्ते इंस्या करणेका उपदेश केशे दीराते हो । उत्तर - आचारंग के पहिले अध्ययनके पहिले उद्देशे में तुम्हारे पूछे मुताबिक प्रश्नका पाठ नहीं है । अतएव उत्तरही देनेकी आवश्यकता नहीं है । तथापि तुम्हारे पर दया आनेसे तथा तुम्हारी भूल सुधारनेके लिये, दुसरे उद्देशेका पाठ, जोकि तुम्हारे पूछे हुए प्रश्न संबंधी है, उसको यहाँ दे करके यथार्थ अर्थ दिखलाता हुँ । देखों वह पाठ पृष्ठ २९ में यह है : इमस्स चैव जीविअस्स परिवंदणमागण पूअणाण, जाइ-मरण - मोयणाण दुक्खपडिग्घाय हेडं से सयमेय पुढविसत्थं समारंभइ एहिं पुढविसत्यं समारंभावेश, अपणेवा पुढविसत्थं समारंभते समणुजााइ तं से अदित्राए तं से अबोहिए " ""
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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