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________________ ॥ अहम् ॥ श्रीविजयधर्मसूरिभ्यो नमः। तेरापंथ-मत समीक्षा। पंचमकालका प्रभावही ऐसा है कि-ज्यों ज्यों काल जाता है, त्यों २ एक के पीछे एक, ऐसे मतमतान्तर बढते ही जाते हैं। देखिये, जिन्होंने महावीर देयके शासनका स्वीकार नहीं किया, उन्होंने अपनी खिचडी अलग ही पकानी शुरु कर दी।जैसे महावीरदेवके शासनबाह्य निह्नवोंकी कथाएं तो सुप्रसिद्ध ही हैं । तदनन्तर वि. सं. १५०८ में लोंका लेखकने, जोकि गृहस्थ था, लंपकमत चलाया । और लोगोंको बहकाकर विपरीत मार्गपर ले जानेके लिये खूब ही प्रयत्न किया। इसके बाद १७०९ में, • इसी लोंका लेखकके चलाए हुए मतमेंसे लवजी ऋषिने ढूंढक पंथ (स्थानकवासी) निकाला । जिसने मूर्तिपूजन वगैरहका निषेध किया। इसकी सिद्धिके लिये, सूत्रोंमे जहाँ २ मूर्तिपूजाका अधिकार आया, उसके अर्थोंको बदलनेमें बहादुरीकी । तदनन्तर इसी ढूंढक पंथमेसे एक तेरापंथी' मत, निकला कि जिसकी समीक्षा करना, आजके लेखका प्रधान उद्देश्य है। इस पुस्तकम, पहिले तेरापंथ-मतकी उत्पत्ति, उसके मन्तव्य, पाली
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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