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________________ तेरापंथ-मत समीक्षा । आप लोग पाट उत्सव करते हैं, हजारों आदमी इकट्ठे हो करके आनंद मनाते हो । हजारों श्रावक-श्राविका मिलकरके तुम्हारे पूज्यको बंदणा करनेके निमित्त चातुर्मास में जाते हो, वहाँ आप आपसमें खानपानसे भक्ति करते हो । बतलाओ, इसका नाम संघ है कि नहीं ? | क्या तुम्हारे माने हुए संघ के ऊपर भृंग होते हैं ? । बडे आश्चर्य की बात है कि खुद संघ निकाT लते रहते हो, और दूसरों को निषेध करते हो। हमें इस बातका जवाब दीजिये कि किस सूत्रके कौनसे पाठके आधारसे आप लोग उपर्युक्त प्रवृति कर रहे हो ? । हमें बडी भावदया आती है कि सच्चे तीर्थके वैरी हो करके, आप लोग दूसरे रास्ते चले जा रहे हो । | ३८ प्रश्न- ४ पाश्यांण वो रत्नांरी जिन प्रतामारी अवलतो गत जात ईद्री कीसी दोयम जिन प्रतमा जिवरो भेद गुणसठांणो और डंडकीसो पावे तीसरी प्रज्याये प्रांण सरीर जोग उप्पीगो कर्म आतमा और लेस्या कीतनी ओर कोनसी कोनसी पावैः चोथा जिनप्रतिमा शनि या अशनि तस्य या थावर सो ईन कुल वार्ता का उत्तर फरमावैः । 66 उत्तर - प्रतिमामें गति, जाति, इन्द्रिय, जीवका भेद, गुणस्थानक, दंडक, पर्याय, प्राण, शरीर, जोग, उपयोग, कर्म, आत्मा, लेश्या, सन्नी या असन्नी, त्रस अथवा स्थावर ये बातें पूछनेवाले तेरापंथी महानुभावोंको समझना चाहिये कि नाम - निक्षेपेमें पूर्वोक्त वस्तुएं जितनी पाई जाँय, उतनी ही जिनप्रतिमामें पाई जाती हैं । जैसे नामको मान्य रखते हो, वैसे ही स्थापमाको भी अवश्य माननाही पडेगा। क्योंकि स्थापना जड है। तो
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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